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तक आपको जेल की दारुण यातनाएं भोगनी पड़ीं। आजादी के बाद श्री जैन ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आप अन्तिम समय तक श्री गाँधी इन्टर कालेज चरथावल के प्रबन्ध क. अध्यक्ष, मार्ग-निर्देशक आदि पदों पर रहे। आपका निधन मई 1992 में हुआ।
आ) (1) जैन मित्र 10 अप्रैल 1941 (2) दैनिक अमर उजाला, मेरठ, 12 मई 1992
श्री चुन्नीलाल जैन
भारत माता गुलामी की जंजीरों से त्रस्त थी । भारत के गण्यमान नेता अपनी भारत माता को विदेशीय शक्ति से छुटकारा दिलाने के लिए भारत की जनता को जगा रहे थे। प्रत्येक ग्राम की जनता के हृदय में विदेशियों के प्रति अग्नि की ज्वाला भड़क उठी थी। इस पुनीत कार्य में ग्राम पिण्डरई का जनसमूह भी पीछे नहीं था । पिण्डरई के बाल, वृद्ध व नवयुवक राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत थे। इनमें श्री चुनीलाल जैन, पुत्र-श्री पन्नालाल जैन का नाम
अग्रगण्य है।
चुन्नीलाल जी का जन्म 1920 में हुआ। आप की शिक्षा पिण्डरई में ही हुई थी। राष्ट्रहित को प्रधानता देने के कारण आप अपनी पढ़ाई से पिण्ड छुडा कर कांग्रेस कार्य में व्यस्त रहने लगे। 1936 में आप पिण्डरई से नैनपुर आकर कपड़े की दुकान का भार सम्हालने लगे । त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में चुन्नीलाल जी ने स्वयंसेवक के रूप में कार्य किया। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में आपने सक्रिय भाग लिया। अगस्त 1942 के आन्दोलन में चुन्नीलाल जी पीछे नहीं रहे। आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण विदेशी सरकार ने 2 सितम्बर 1942 को आपको
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
मण्डला जेल में बन्द कर दिया। निरन्तर छः माह तक जेल के कष्टों को सहन कर 1 मार्च 1943 को जेल से रिहा हुए।
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(1) म) प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृ0 207, (2)
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श्री चुन्नीलाल जैन
ग्राम-विनौका, जिला - सागर (म0प्र0) निवासी और जबलपुर प्रवासी श्री चुन्नीलाल जैन, पुत्र श्री भागीरथ ने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में 1 माह का कारावास भोगा ।
(आ) (1) म० प्र० स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ-24, (2) आ दी), पृ0-42
श्री चुन्नीलाल जैन
जबलपुर ( म( प्र ( ) ) के श्री चुन्नीलाल जैन, पुत्र - श्री मूलचन्द ने भारत छोड़ो आन्दोलन में 17 सितम्बर 1942 से 15 जनवरी 1943 तक का कारावास सागर जेल में भोगा।
आ) - ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग-1, पृ0-48
बाबू चेतराम जैन
जुर्माना अदा न करने पर जिनकी सारी सम्पत्ति ही नीलाम कर दी गई, पर जो झुके नहीं, ऐसे बाबू चेतराम जैन का जन्म कटंगी, तहसील - पाटन, जिला - जबलपुर (म0प्र0)) में हुआ। श्री जैन लगनशील, साहसी एवं कर्मठ राष्ट्रसेवी थे। 1930 से 1942 तक के सभी आन्दोलनों में वे जीवटता से सक्रिय रहे । प्रथमतः जंगल सत्याग्रह के दौरान आप गिरफ्तार हुए और चार माह की कठोर कैद तथा 100/- रु0 का जुर्माना पाया, पर ' आजादी के दीवानों ने कभी जुर्माना भरा है क्या?' आपने भी जुर्माना अदा नहीं किया फलतः आपकी सम्पत्ति नीलाम कर दी गई। पाटन तहसील में कांग्रेस संगठन को सशक्त बनाने में आपका प्रयास आज भी स्मरण किया जाता है। 1942 के आन्दोलन में आप पुनः गिरफ्तार हुए और सित
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