________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रथम खण्ड
151 गुदड़ी मंसूर खाँ, आगरा (उ) प्र()) में पिता श्रीचंद आपके जेल जीवन का एक संस्मरण है। एवं माता जीवनी बाई के यहाँ हुआ। अभी वे 4 वर्ष आपका नित्य देवदर्शन-पूजन का नियम था। पुलिस के बालक ही थे कि पिता का देहावसान हो गया, आपको रिमाण्ड पर लेना चाहती थी। जब पुलिस तब पितृव्य (चाचा) सुखाराम जी ने आपका आपको लेने जेल पहुँची, आप पूजन कर रहे थे, लालन पालन किया। 1931 में हाई स्कूल परीक्षा पास पूजन के बाद देखा! अचानक पुलिस गायब थी। इस करने के बाद आप श्री महावीर दि0 जैन स्कूल मोती प्रकार पूजा के प्रभाव से आप बच गये। श्री जैन के कटरा (आगरा) में अध्यापक और तीन वर्ष बाद वहीं जेल जीवन के साथी प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री प्रधानाचार्य हो गये। तभी अपनों ने 'मास्साव' नाम दिया चिम्मनलाल जैन ने लिखा है- 'आगरा में हर महीने जो आज तक चला आ रहा है। 1930 में श्री जैन की नौ तारीख को गिरफ्तारी तथा बम विस्फोट का की पहली कविता 'प्रेम से विजय' पल्लीवाल जैन, कार्यक्रम चलता था। मास्टर साहब ने विस्फोट के लेखमाला में छपी, बाद में अनेक लेख आपने लिखे। लिए एक बम एम०एससी) के विद्यार्थी हुकुमचन्द 1937 में आप प्रसिद्ध साहित्य प्रेमी महेन्द्र जी के जैन को दिया, जो सेठ गली के सिटी पोस्ट आफिस संस्थान- 'साहित्य रत्न भण्डार' से जुड़ गये, तभी में बम का पार्सल करा आया था। जब वह फटा तो 'नागरी प्रचारिणी सभा' से सम्पर्क हुआ, साथ ही बाब आधा फर्नीचर उड़ गया था। मास्टर साहब के भेजे गुलाबराय, डॉ0 सत्येन्द्र जैसे साहित्यकारों के सम्पर्क एक विद्यार्थी ने आगरा कालेज के प्रिन्सीपल की में भी आये।
मेज की दराज में बम रखा था, जिससे मेज छत तक 1930 के आन्दोलन के समय आप 'जैन सेवा उड़कर टूट गई थी। मास्टर साहब ने जैन मन्दिरों से मण्डल' के अधिकारी थे। आपकी प्रेरणा से 'आगरा
अखबार का वितरण कराया, जिसमें मेरी माँ, और जैन मण्डल' ने यह निश्चय किया था कि जैन मंदिरों
बहिन दो-दो, तीन-तीन घण्टे पैदल चलकर अखबार में सभी दर्शनार्थी स्वदेशी वस्त्र पहनकर ही देव-दर्शन
यथास्थान पहुँचाती थीं।' (गो0 अ0 ग्र0, पृ0-123) को जावें तथा पूजन हेतु भी स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग
इसी तरह स्वाधीनता सेनानी श्री रोशन लाल गुप्त करें। 1940 के आन्दोलन में भी आपने भाग लिया
'करुणेश' ने श्री जैन के सन्दर्भ में लिखा हैथा। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में "(महेन्द्र जी के गिरफ्तार होने के बाद 'आजाद आगरा आन्दोलन का नेतृत्व महेन्द्र जी के हाथ में था। हिन्दुस्तान के प्रकाशन का दायित्व) मास्टर गोर्धनदास विशेषत: समाचार-पत्रों के माध्यम से वे जन-जागृति के सबल कंधों पर आ पड़ा। श्री गोर्धनदास साहित्यिक ला रहे थे। ऐसे समय में गोर्धनदास जी ने एक
परिवेश में परिपक्व हो चुके थे। ............ वे विगत साइक्लोस्टाइल समाचार पत्र का सम्पादन और प्रकाशन
सत्याग्रह संग्रामों में 'सिहंनाद' पत्र निकाल चुके थे। स्वयं किया, जिसका नाम 'आजाद हिन्दुस्तान' था। उस उसे बांटने वाले अनेक कार्यकर्ता पुलिस प्रशासन के समय जिसके पास इस पत्र की एक भी प्रति पाई
कोप-भाजन बन चुके थे। खुफिया विभाग के लोग जाती थी, उसे कठोर दण्ड दिया जाता था। गोर्धनदास
हर कोशिश करने पर भी उसके प्रकाशन का पता नहीं जी भूमिगत रहकर इस पत्र का संचालन कर
लगा सके थे। उसी प्रणाली को -'भारत छोड़ो जन-जागति करते रहे, पर अन्तत: 8 मार्च 1943 को आन्दोलन' में श्री जैन ने अपनाया। 'आजाद हिन्दुस्तान'
के बण्डल न जाने कहाँ से कहाँ पहँचा दिये जाते और गिरफ्तार कर आगरा जेल भेज दिये गये। 10 जून 1944 तक आपको जेल की दारुण यातनाऐं भोगनी पड़ीं। खुफिया विभाग के लोग देखते ही रह जाते। सन 1943
For Private And Personal Use Only