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- स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्री गोकुलचंद जैन
कहा जाता है कि 1916 में अंग्रेज पुलिस श्री गोकलचंद जैन का जन्म लडवारी, कप्तान दमोह जेल के सामने पुलिस लाइन के बगल जिला-ललितपुर (उ0प्र0) में हआ। आपके पिता का के बंगले में रहता था। उसने आदेश निकाला कि 'इस नाम श्री दमरू जैन था। 1941 के आंदोलन में एक रोड़ के कोई बैलगाड़ी नहीं निकलेगी। हमारी नींद में माह की सजा एवं 100 रु0 जुर्माना का दण्ड स्वीकार बाधा आती है।' सिंघई जी ने उसका विरोध किया, कर आपने देश को आजाद कराने में सहयोग दिया। कई आम सभायें की, जिससे वह अफसर इनका आ) (1) र0 नी), पृ0-100
दुश्मन बन गया और आपको मार डालने के लिए
एक भयंकर अपराधी को जेल से मुक्त कर दिया। श्री गोकुलचंद जैन
दूसरे दिन जब सिंघई जी साइकिल पर उस रास्ते से श्री गोकुलचंद जैन मेघपुर, जिला-आगरा जा रहे थे, तब उस कैदी ने उन्हें रोका और पैर (उ0प्र0) निवासी थे। 1942 के आन्दोलन में आपने
पकड़कर कप्तान का हुक्मनामा सुनाकर क्षमा मांगी। सक्रिय भाग लिया, गिरफ्तार हुए और एक साल की यह सिंघई जी के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था। अन्त कडा सजा भीगी। आप मथुरा ब्लाक के, ब्लाक में वह रास्ता हर प्रकार के वाहनों के लिए खोल प्रमुख भी रहे।
दिया गया। आ0-(1) प0 इ0, पृष्ठ-142, (2) गो0 अ0 ग्र0, पृ0-220
आ0- (1) प0 जै) इ0, पृ0 519, (2) श्री सन्तोष सिंघई श्री गोकुलचंद जैन
द्वारा प्रेषित परिचय जबलपुर (म0प्र0) के श्री गोकुलचंद जैन,
श्री गोपालदास जैन पुत्र-श्री नोखेलाल ने 1932 के आन्दोलन में भाग पेशे से व्यापारी किन्तु स्वतंत्रता संग्राम में अपनी लिया तथा 5 माह के कारावास एवं 30 रु0 आहुति देने से पीछे न हटने वाले श्री गोपालदास जैन अर्थदण्ड की सजा पाई।
का जन्म 1912 में साढूमल, जिला-ललितपुर आ0-(1) म0 प्र) स्व) सै), भाग-1, पृष्ठ-42 (उ0प्र0) में हुआ, आपके पिता का नाम श्री सवाई जी श्री गोकुलचंद सिंघई
था। 1941 में व्यक्तिगत आंदोलन में भाग लेकर दमोह (म0प्र0) के श्री गोकुलचन्द सिंघई
डी0आई0 आर0 में 9 माह की सजा आपने भोगी।
1942 में 'करो या मरो' आन्दोलन में भी आप वकालत का व्यवसाय करते थे, उन पर अमर शहीद चौधरी भैयालाल का बड़ा प्रभाव था, उन्हीं के
पीछे नहीं रहे, फलतः पुनः 1942 में 1 वर्ष की सान्निध्य में आपने खादी आश्रम चलाना, गौरक्षा,
___ जेलयात्रा की। शराबबंदी आदि कार्य सक्रियता से किये। सिंघई जी।
आ)-(1) र) नी0, पृ0-46 की बुद्धि कुशाग्र थी अत: दमोह में शासकीय अधिकारी
श्री गोपाललाल कोटिया तक उनसे सलाह लेने आते थे। अखाड़ेबाजी के शौकीन मृत्यु से पूर्व दाने-दाने को मोहताज और मृत्यु सिंघई जी ने दमोह में सभी अखाड़ों का संगठन बनाकर के बाद ससम्मान राजकीय शोक के साथ अन्त्येष्टि, दशहरा महोत्सव प्रारम्भ कराया था। 1931 में आप यही दशा रही है इस देश के स्वातन्त्र्य सैनिकों गिरफ्तार हुए और रायपुर जेल भेज दिये गये। 1933 की। श्री गोपाल लाल कोटिया इसके जीते-जागते में 58 वर्ष की उम्र में आपका निधन हो गया। उदाहरण हैं।
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