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स्वतंत्रता संग्राम में जैन आ)- (I) म) प्र) स्व० सै0, भाग-1, पृष्ठ-228, __ आपके पूर्वजों में श्री चिन्तामणी शाह को (2) श्री नरेश दिवाकर द्वारा प्रेषित परिचय।
'गोरा' जागीर से मड़ावरा में रहने का आग्रह किया
गया था और वे आग्रह को स्वीकार कर मड़ावरा आ श्री खुमान जैन
गये थे। इसीलिये चिन्तामणी शाह का परिवार 'गोरावाला' दलपतपुर, जिला-सागर (म0प्र0) निवासी श्री के नाम से विख्यात हो गया। 1857 की गदर के बाद खुमान जैन, पुत्र-श्री आधार ने भारत छोड़ो आंदोलन यह परिवार बिट्रिश बर्बरता का शिकार हुआ। इस में माह का कारावास काटा। 1960 में आपका प्रकार चिन्तामणी शाह के वंशधर उमराव शाह निधन हो गया।
जागीरदार से साधारण साहूकार रह गये। इस वंश में आ (I) आ) दी), पृष्ठ-36, (2) म0 प्र0 स्व0 सै0, जन्में गोरावाला जी में क्रांति की भावना जन्म जात भाग , पृष्ठ-16
होना स्वाभाविक ही था। 1930 में गोरावाला जी प्रो० खुशालचंद गोरावाला
सत्याग्रही स्वयंसेवक बने। 1932 में विलिंगडन
शाही के दमन के समय वाराणसी के टाउनहाल में परतंत्र भारत में विवाह न करने की प्रतिज्ञा
एल0 ओवेन द्वारा किये गये गोलीकांड के समय करने वाले, क्षु० गणेश प्रसाद जी वर्णी के अत्यन्त
आपको मृत समझ लिया गया था, क्योंकि पास ही प्रिय पात्र, हिन्दी भाषा को
में खड़े श्री योगेश्वर प्रसाद को गोली लगी थी। 'भारती' नाम देने के
स्वतन्त्रता आंदोलन के समय आप महात्मा पक्षधर प्रो0 खुशाल-चंद
गांधी से अत्यधिक प्रभावित रहे। 1941-42 के आंदोलनों गो रावाला का जन्म
में आपकी जेलयात्रा के संबंध में 'जैन सन्देश, राष्ट्रीय 22 सितम्बर 1917 को
अंक (जनवरी 1947)' लिखता हैमड़ावरा, जिला-ललितपुर
..........28 वर्ष का यह युवक सन 41 के (उ0 प्र0) में हुआ। आपके
व्यक्तिगत सत्याग्रह में तूफान की तरह प्रसिद्धि में आया पिता श्री फुन्दीलाल गोरावाला जमींदार व जागीरदार ।
और आते ही प्रान्तीय नेताओं की अगली पंक्ति में जा हुआ करते थे। गोरावाला जी को सात वर्ष की
पहुँचा। आपने उस समय कांग्रेस के सत्याग्रह आंदोलन अवस्था में मातृ-वियोग सहन करना पड़ा। .
। के मुख्य संचालक और युक्त प्रांतीय कांग्रेस कमेटी साढूमल में प्राथमिक शिक्षा प्राप्तकर 1928 में उन्होंने
। के सेक्रेटरी के रूप में जो प्रान्त की राष्ट्रीय सेवा की, वाराणसी के स्याद्वाद महाविद्यालय में प्रवेश लिया।
वह प्रान्त के इतिहास में एक मिसाल बन गई है। जिस यहीं उन्होंने पूज्य वर्णी जी, पं0 कैलाश चंद शास्त्री
वेग और योग्यता से आपने आदोलन का संगठन किया, और पं0 राजेन्द्र कुमार के सान्निध्य में 1937 में कांग्रेस को अवांछनीय तत्त्वों से मुक्त किया. उससे प्रान्त वी) एच) यू) सेबी0ए) और गवर्नमेन्ट संस्कृत का रिकार्ड शानदार हो गया। ऐसे अवसर पर देश को कालेज (अब सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय) जिनकी आवश्यकता होती है, सरकार को भी उनकी से साहित्याचार्य की उपाधियाँ एक साथ प्राप्त आवश्यकता होती है। पलिस की आंखों में बराबर की। वे जैन समाज के सम्भवतः ऐसे पहले धुल झोंकते हुए भी आप जुलाई सन् 41 में पकड़े व्यक्ति थे, जिन्होंने दो उपाधियाँ एक साथ गये। दफा 129 में दो माह नजरबंद रखकर दफा 39 प्राप्त की।
में चार माह की सजा हुई। उसके पश्चात् सन् 42
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