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प्रथम खण्ड
कतल कर दिया जाये फबहा (बहुत अच्छा)। अन्न मजहबी दीवानों ने सेठी जी को दफना दिया। उनके कष्ट, जल कष्ट, वायु कष्ट ,...........आवं...............। परिवार वालों को तीन दिन बाद उनकी मृत्यु का संवाद
......मैं तो जैनधर्म और उस राजनीति मिला। प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और धर्मत महात्मा का प्रचार करूँगा जो आपसे कई बार स्पष्ट हो चुके भगवानदीन ने लिखा है- "अर्जुनलाल सेठी को हम हैं। जो बड़वानी पर ले गये वे ही आगे का रास्ता · आदमी कहें या देश की आजादी का दीवाना कहें, खोलंग।...............
हम अर्जुनलाल सेठी को हिन्दुस्तानी कहें या आजादी _ सेठी के दीपक का परवाना कहें, जो अपने 25 वर्ष के
इकलौते बेटे को मौत के बिस्तर पर छोड़कर पा) सुन्दर 1937-40 के आसपास सेठी जी राजनैतिक
और लाल के एक मामूली तार पर दौड़ा हुआ बम्बई पहुँचता घात-प्रतिघाता से इतने क्षत-विक्षत हो चुके थे कि
है और बेटे के मर जाने के बाद भी उसे देश का सचमुच अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। वे
काम छोड़कर घर लौटने की जल्दी नहीं होती" राजस्थान प्रान्तीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। कांग्रेस हाई कमाण्ड नहीं चाहता था कि राजपताने की बागडोर सेठी देशबन्धु चित्तरंजनदास जी ने सेठी जी के सन्दर्भ जी के हाथ में रहे। कांग्रेस-चुनाव में खद्दर के कपड़े में कहा था- आप (सेठी जी) के जन्म का उपयुक्त कली-कवाडियों को पहनाकर सेठी जी के प्रतिद्वन्दी स्थान राजस्थान नहीं था। आप बंगाल में जन्म लेते तो को बांट दिलवाये गये फिर भी सेठी जी विजयी हए। देखते कि बंगाल आपका कितना सम्मान करता है। जब वे बन्दी बनाकर रेल द्वारा ले जाये जाने लगे तो जनता इंजन कं आग लेट गई। महात्मा गांधी अजमेर प्रसिद्ध दिगम्बर जैनाचार्य और विद्यार्थी जीवन आये तो सेठी जी उनके यहाँ नहीं गये, महात्मा जी में सेठी जी के शिष्य रहे आचार्य समन्तभद्र ने लिखा ही उनके घर आये। इतनी दृढ स्थिति को हाई कमाण्ड है- 'सेठी जी हिन्दू थे, मुसलमान थे, जैन थे या क्या कैस वर्दास्त करता। सेठी जी का राजनैतिक जीवन थे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें जलाया गया समाप्त करने के लिए कई लाख रुपया व्यय किया या दफनाया गया, यह भी दुनियावी बातें हैं। सेठी जी गया. अनेक दांव पंच खेले गये और इस प्रकार इस इन सबसे ऊपर थे.... वे अपना काम करते रहे। उनका क्रान्तिकारी की राजनैतिक हत्या कर दी गई। कर्म ही धर्म था।
जीवन के अन्तिम समय में राजनैतिक और भारत में अंग्रेजी राज' के लेखक पं0 सुन्दर आर्थिक दु:श्चिन्ताओं के कारण सेठी जी का मानसिक लाल जी तथा महात्मा भगवानदीन जी ने एक संयुक्त सन्तुलन खराब हो गया। जब कहीं आश्रय नहीं मिला वक्तव्य में 26 अक्टूबर 1948 (विश्वमित्र दैनिक, तां 30 रुपया मासिक पर अजमेर में मुस्लिम बच्चों दिल्ली संस्करण) को कहा था- 'हम दोनों सेठी जी को पढ़ाने पर मजबूर हो गये। अपने ही लोगों के को उनके पब्लिक जीवन के करीब-करीब शुरू होने तिरस्कार का उनके हृदय पर ऐसा आघात लगा कि से जानते थे। हममें व उनमें घनिष्ट संबंध था। हम उन्होंने घर आना-जाना भी बन्द कर दिया। 22 दिसम्बर उन्हें देश की महान् से महान् आत्माओं में से एक 1941 को वे इस स्वार्थी संसार से प्रयाण कर गये। गिनते हैं। जिनकी लगन, जिनका त्याग, जिनकी
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