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स्वतंत्रता संग्राम में जैन के मुँह में पानी भर आया और सेठी जी से बरफ बन पड़े उतनी कर, मगर सेवा करते-करते एक दिन दिलवाने की जिद करने लगे। मगर चील के घोंसले निरा सेवक बनकर न रह जाना पड़े इसके लिए सदैव में माँस कहाँ ? वे चुपचाप थोड़ी देर तो बच्चों का सावधान रहना।" रोना-बिलखना देखते-सुनते रहे। जब न रहा गया तो मुझसे बोले- "गोयलीय! तुम बहुत अच्छा व्याख्यान सेठी जी राजनैतिक क्षेत्र में ही पीड़ित नहीं रहे, दे लेते हो, आज इन बच्चों को बरफ की अनुपयोगिता वे पारिवारिक भरण-पोषण की चिन्ता में भी जीवन पर एक स्पीच दो !"
के अन्तिम श्वास तक गलते रहे। यौवन काल में ही मैंने कहा- “सेठीजी, कहीं बच्चे भी इस तरह देशसेवा में कूद पड़े। पूर्वजों का जो संचित था वह की सीख मानते हैं। खासकर, बरफ, चूरन और मिठाई स्वराज्य के दाव पर लगा दिया। बुढ़ापे में सहायता के संबंध में।"
तो दूर 30/- रु0 मासिक वेतन पर भी वे मंहगे समझे सेठी जी के अब तेवर बदल चुके थे ! बोले- गये। उनकी इस दयनीय स्थिति का पता श्री "तो इन्हें यह समझाओ कि तुम्हारे नालायक पिता कुछ अयोध्याप्रसाद गोयलीय को लिखे निम्न पत्र से कमाते-धमाते नहीं हैं, और जो तुम्हारे बाबा छोड़ गये चलता हैथे उसे भी ये स्वाहा कर चुके हैं।"
अजमेर ___मैं सहम कर बोला-- "सेठीजी, अभी इनमें इतनी
17 अगस्त 1937 समझ ही कहाँ है जो समझाने से मान सकें।" बन्धुवर,
बोले- "नालायक, यह भी नहीं समझेंगे, वह - मैं कल यहाँ आया, जयपुर में बीमार हो गया भी नहीं समझेंगे तो फिर मैं क्या करूँ? सरकारी नौकर था। मेरी तन्दुरुस्ती खराब हो ही गई। दर असल में को 20 वर्ष में पैंशन मिल जाती है और वह अपने मैं दिलोदिमाग खो ही चुका। यहाँ आपका पत्र रखा बच्चों का निश्चिन्त होकर भरण-पोषण करता है। मैंने हुआ मिला। आपने जो कुछ लिखा है-- वाकई वह अपनी एक-एक हड्डी गलाकर रख दी तब भी वैसा ही है, जो मैं समझ चुका था। ठीक ही है श्रद्धा क्या मुझे इनके भरण-पोषण की चिन्ता से मुक्ति नहीं और प्रेम-भावना असमर्थ, अशक्त के प्रति कभी मिलेगी ?"
किसी की न रही और न रहेगी। भूल इतनी-सी मेरी मैं क्या जवाब देता। हिचकी बंध गई- है कि मैंने अपने को 30/- रु0 का नौकर न
मुझे रोता देखकर बोले- "गधे, मेरी हालते जार समझा।................... से कुछ नसीहत ले। अन्धों की तरह कएँ में मत कद। गोयली जी, सच है रुपये का दासत्व नरक से वर्ना जिन्दगीभर रोता रहेगा। मेरा क्या है मैं तो मिट बढ़कर है और रुपया तो दास भी बनाता है।....... चुका
एक व्यक्ति के सहारे रहना न मेरे लिए इष्ट मेरे बच्चों पर जो गजरेगी उससे मैं वाकिफ हूँ, है न उपादेय। नौकरी तो 30 रु0 की यहाँ भी मिल उनकी आँखों के आँसू पौंछने का भी किसी को ही जायेगी मुझे तो एक उद्देश्य सताता है और यह वही अहसास न होगा।
है जो शायद शपथ खाकर मैंने आपसे उभय पक्ष के लेकिन मैं नहीं चाहता कि त इस तरह की बचनों के साथ जयपुर में प्रकट किया था। मेरे बच्चे गलतियाँ दोहराये। देश और समाज की सेवा जितनी आनासागर में डुबो दिये जाएँ, कुछ परवाह नहीं । मेरा
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