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सेठ गोविन्ददास जी के हाथों आपने ताम्रपत्र प्राप्त किया। 21-9-1996 को आपका देहावसान हो गया।
आ0- (1)- म0प्र0 स्व0 सै0, भाग-1, पृष्ठ-137, (2) स्वतंत्रता सेनानी श्री खेमचंद स्वदेशी द्वारा प्रेषित परिचय श्री कछेदीलाल जैन
बण्डा, जिला - सागर ( म०प्र०) निवासी श्री कन्छेदीलाल जैन, पुत्र - श्री रामलाल ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया व 14 माह का कारावास भोगा। आपका निधन 1972 में हो गया।
आ) - ( 1 ) - म० प्र०) स्व० सं०, भाग 2, पृष्ठ 10, (2) आ दी, पृ0 31
श्री कन्हैयालाल कटलाना
श्री कन्हैयालाल कटलाना प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी स्व () शंकरलाल कटलाना ( इनका परिचय अन्यत्र दिया गया है) के अनुज हैं। आप उग्र स्वभाव के आंदोलनकारी रहे। आपका जन्म 1909 में श्री मोतीलाल कटलाना के घर हुआ। 15 वर्ष की अल्प आयु में ही आप स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गये और पढ़ाई छोड़, क्रातिकारी का बाना धारण कर लिया। सीतामऊ (जहां आपका जन्म हुआ) से परिवार सहित निर्वासित हुए। अनेक बार पुलिस से सीधे-सीधे टकराते रहे। स्टेट की पुलिस, जिस पर अंग्रेजियत का वर्चस्व था, श्री कन्हैया लाल कटलाना के आंदोलनकारी रवैये से सदा परेशान रही। आंदोलन को प्रखर बनाने में श्री कटलाना का योगदान महत्त्वपूर्ण था। भारत छोड़ो आंदोलन में आप अपने भाई के साथ मुंगावली जेल में रहे। जेल में भी आपका रवैया पुलिस के प्रति आक्रामक ही रहा। जेल से छूटने के बाद आप मंदसौर में ही स्थायी रूप से बस गये। छुआछूत आंदोलन में भाग लेने के कारण आप जाति से भी निष्कासित करें दिये गये थे।
आ) (1) ० प्र० स्व0 सं0 भाग 4, पृष्ठ 213. (2) स्व० स० म० पृ० 139-140
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श्री कन्हैयालाल जैन
अपने कठिन परिश्रम से जीविकोपार्जन करने वाले, जबलपुर (म0प्र0) के श्री कन्हैयालाल जैन, पुत्र श्री अबीरचन्द ( अमीरचन्द ) ने 1932 के आन्दोलन में भाग लिया तथा 6 माह का कारावास भोगा ।
स्वतंत्रता संग्राम में जैन
आण ( 1 ) म० प्र०) स्व०) सै0 भाग 1, पृष्ठ 32, (2) स्त्र(0) स) ज०, पृ0 86
अवस्था के कारण में आकर बस गये।
श्री कन्हैयालाल जैन
भरी जवानी में प्रथम प्रसवोद्यता नवविवाहिता प्रियतमा के भी प्रेम को ठुकराकर भारत माँ से प्यार करने वाले श्री कन्हैयालाल जैन का जन्म 26 अगस्त 1910 को चिकसंतर, में हुआ। आपके पिता का नाम श्री कल्याण दास जैन था। आपने माध्यमिक तक शिक्षा ग्रहण की। पिता की जर्जर आप मुरार, ग्वालियर (म0प्र0)
9 अगस्त को जब गांधी जी द्वारा 'करो या मरो' का नारा दिया गया तब आपने मुरार छावनी की फौज से बगावत करने वाले सैनिकों को मुरार नदी पर तिरंगा झण्डा देकर उन्हें भी आजादी के लिये प्रेरित किया। परिणामस्वरूप अंग्रेजों की फौजों द्वारा बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया। जिससे आपके दोनों पैरों को काफी चोटें आईं और आप आजीवन परेशान रहे।
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29 अगस्त 1942 को एक जुलूस के रूप में अपने अन्य सहयोगियों के साथ मुरार थाने पर जाकर आपने गिरफ्तारी दी, जहाँ से आपको ग्वालियर कारावास में भेज दिया गया और कुछ दिनों के बाद सबलगढ़ स्थानान्तरित कर दिया गया, जहां से 25 मई 1943 को आप आजाद हुए। देश की आजादी के बाद