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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
विरोध किया गया। विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई। विदेशी वस्तुओं को बेचने वाली दुकानों पर धरने आयोजित किये गये । देश की महिलाओं ने सामूहिक रूप से पहली बार राजनैतिक मामलों में सड़कों पर अपना अस्तित्व पूरी शक्ति से जताया एवं बड़ी सफलता प्राप्त की। 1905 के आते-आते राष्ट्रीय आन्दोलन जन आन्दोलन बन गया। लाखों लोग उससे जुड़ गये और स्वतंत्रता प्राप्त करना उनका एक मात्र लक्ष्य बन
गया।
1905 में गोपाल कृष्ण गोखले ने वाराणसी में कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की, उन्होंने 'स्वदेशी और बहिष्कार' आन्दोलन का जोरदार समर्थन किया। इस आन्दोलन से जन चेतना बढ़ी। पहली बार देश की आर्थिक नीति की दिशा में विचार हुआ। इससे स्वदेशी उद्योगों की स्थापना में मदद मिली। स्वेदशी वस्तुएं बेचने वाली दुकानें स्थापित करना 'देशभक्ति का प्रतीक और ब्रिटेन के विरुद्ध संघर्ष का हिस्सा' बन गया। इसी तारतम्य में तमिलनाडु के राष्ट्रवादी नेता पी0ओ0 चिदंबरम् पिल्लई ने 'स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी' की स्थापना की।
1906 में कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। दादाभाई नौरोजी ने उसकी अध्यक्षता की। नरम और गरम दल का विचार-संघर्ष चरम सीमा पर था। इस अधिवेशन में यह बात उभर कर सामने आई कि अब कांग्रेस की रुचि प्रशासन के सुधार को आगे बढ़ाकर कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे स्वशासित उपनिवेशों की तरह की सरकार में है। ये देश ब्रिटेन के आधिपत्य में थे जबकि शासन जनता से चुने गये प्रतिनिधि यों की सरकार के पास था।
जहाँ एक ओर प्रदर्शन और प्रस्तावों से स्वतंत्रता प्राप्ति की बात आगे बढ़ रही थी, वहीं देश में एक वर्ग ऐसा भी था जो ब्रिटिश शासन को बल के जरिए उखाड़ फेंकने में विश्वास करता था । उसके अधिकांश सदस्य नौजवान थे। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियां उन्हें भड़काती थीं। ये संगठन महाराष्ट्र और बंगाल
में
अधिक सक्रिय रहे। महाराष्ट्र में इनका संगठन 'अभिनव भारत सोसायटी' एवं बंगाल में 'अनुशीलन समिति' के नाम से जाना जाता था। इन संगठनों ने बदनाम ब्रिटिश अफसरों, पुलिस अफसरों, मजिस्ट्रेटों, मुखबिरों, गवर्नरों तथा वायसरायों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यवाही की । क्रांतिकारी संगठन के सदस्य सदैव कम रहे किन्तु उन्हें जन मानस का श्रद्धायुक्त समर्थन मिलता रहा। जनता की निगाह में उनकी इज्जत मंच पर भाषण देने वालों से सदैव ही अधिक रही।
क्रांतिकारी संगठनों के खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने 1908 में मुजफ्फरपुर में एक घोड़ागाडी पर इस अनुमान से बम फेंके कि इसमें ब्रिटिश जज जा रहा है, वह जज आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को कड़ी एवं लम्बी सजा देने के लिए प्रख्यात था। भाग्य उसके साथ था, वह गाड़ी में नहीं था, फलत: दो अंग्रेज महिलाओं, जो गाड़ी में सफर कर रही थीं, की मृत्यु हो गई। चाकी ने आत्महत्या कर ली एवं खुदीराम बोस को फाँसी दे दी गई। इस घटना के बाद क्रांतिकारियों की जोर-शोर से तलाश प्रारंभ हुई। कलकत्ता के मणितल्ला गार्डन (जिसका उपयोग क्रांतिकारी बम बनाने एवं हथियार प्रशिक्षण में करते थे ) पर पुलिस ने छापा मारा, अनेक क्रांतिकारी पकड़े गये, जिनमें अरविंद घोष एवं वारीन्द्र कुमार घोष प्रमुख थे। कुछ को आजीवन कारावास हुआ एवं अरविन्द घोष ने राजनैतिक गतिविधियों से सन्यास ग्रहण कर पांडिचेरी में आश्रम की स्थापना की। क्रांतिकारियों ने ढाका के मजिस्ट्रेट तथा नासिक एवं तिन्नेवेली के . कलेक्टरों को गोली से मार डाला। 1912 में वायसराय हार्डिंग की हत्या का प्रयत्न चांदनी चौक में उनके जलूस पर बम फेंक कर किया गया।
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