________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रथम खण्ड
33
कांग्रेस ने प्रारम्भ में रियासतों के मामले में तटस्थता का रुख अख्तियार किया था, यद्यपि नेता रियासतों में जाते रहे तथा मांग का समर्थन भी करते रहे, किन्तु 1938 में सुभाषचंद्र बोस की अध्यक्षता में कांग्रेस अधिवेशन में यह घोषणा की गई कि पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य रियासतों सहित समूचे देश के लिए है। यह भी स्पष्ट किया गया कि रियासतें देश का हिस्सा हैं, उनकी जनता के हित और शेष देश की जनता के हित एक से हैं।
सितंबर 1939 में हिटलर ने पोलैंड की सेना को रौंदकर द्वितीय विश्वयुद्ध का सूत्रपात किया। इस युद्ध के कारण पूरा विश्व दो भागों में बंट गया। एक तरफ मित्र राष्ट्र फ्रांस, इंग्लैंड, अमेरिका एवं सावियत संघ (रूस) थे, दूसरी तरफ धुरी राष्ट्रों में जर्मनी, इटली, एवं जापान थे। वस्तुतः इस युद्ध के एक तरफ तानाशाही शक्तियां थीं तो दूसरी तरफ लोकतांत्रिक। भारत का इस युद्ध से कुछ लेना-देना नहीं था, फिर भी ब्रिटेन का उपनिवेश होने के कारण ब्रिटेन ने भारत की जनता की सलाह लिये बिना ही उसे इस युद्ध में शामिल कर लिया। कांग्रेस ने मांग की कि तुरन्त राष्ट्रीय सरकार का गठन किया जाए एवं युद्ध समाप्त होते ही भारत को पूर्ण स्वतंत्र करने का वचन दिया जाये। ब्रिटेन ने यह मांग अस्वीकार कर दी। उस समय प्रान्तों में चुने हुए मंत्रिमंडल, जिनके पास एकदम सीमित अधिकार थे. अस्तित्व में थे। ब्रिटेन के निर्णय के विरोध में उन्होंने इस्तीफे दे दिये।
भारत को जबरन युद्ध में शामिल करने के विरुद्ध मार्च 1940 में देशव्यापी प्रदर्शन किये गये। कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। अक्टूबर 1940 में कांग्रेस ने 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' आन्दोलन प्रारम्भ किया, इस आन्दोलन का अर्थ था कि कांग्रेस द्वारा चुने गये सत्याग्रही एक-एक करके सार्वजनिक स्थानों पर पहुंचेंगे, युद्ध के खिलाफ भाषण देंगे, लोकमत तैयार करेंगे एवं गिरफ्तारी देंगे। इस आंदोलन के चुने हए पहले सत्याग्रही विनोबा भावे थे। थोडे ही समय में 25000 सत्याग्रही गिरफ्तार होकर जेल में बंद हो गये। इनमें कांग्रेस के अधिकांश प्रमुख नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य (बाद में भारत के प्रथम गवर्नर जनरल), जी0बी0 गाडगिल, सरोजनी नायडू, जी0बी0मावलंकर, अरुणा आसफ अली आदि थे।
1942 के आरम्भ में युद्ध में ब्रिटेन का पलड़ा हल्का पड़ने पर उसकी सेनाओं को भारी क्षति उठानी पड़ी, फलतः उसने भारतीय नेताओं से बात करने के लिए सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भेजा। यह मिशन असफल रहा क्योंकि वास्तव में ब्रिटेन राष्ट्रीय सरकार की स्थापना को तैयार ही नहीं था। उन्होंने (सर क्रिप्स ने) संविधान सभा की मांग तो स्वीकार की किन्तु साथ ही यह भी कहा कि राजाओं द्वारा नामजद व्यक्ति ही उसके प्रतिनिधि होंगे। जनता को संविधान सभा में प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा।
क्रिप्स मिशन की असफलता के साथ ही भारतीय जनता का 'तीसरा महान् संघर्ष' शुरू हुआ। इस संघर्ष को 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के नाम से जाना जाता है। 8 अगस्त 1942 को भारतीय कांग्रेस कमेटी ने एक प्रस्ताव पास किया, जिसमें कहा गया था कि 'आजादी एवं जनतंत्र की विजय के लिए फासिस्ट देशों तथा जापान के विरुद्ध लड़ रहे मित्र राष्ट्रों के लिये यह जरूरी है कि भारत को जल्दी से स्वाधीनता मिल जाये।' प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि 'स्वतंत्र हो जाने पर भारत अपने सम्पूर्ण साधनों से उन देशों के साथ महायुद्ध में शामिल हो जायेगा, जो फासिज्म और साम्राज्यवादी आक्रमण के खिलाफ संघर्ष कर
For Private And Personal Use Only