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प्रथम खण्ड
श्री जैन उच्च कोटि के दानी, उदार हृदय और परोपकारी थे, आपने गांवों में मन्दिरों, शिवालयों, कुओं व तालाबों का निर्माण कराया तथा टूटे हुए मंदिरों का जीर्णोद्धार भी कराया।
1857 में जब प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तब लाला हुकुमचंद की देशप्रेम की भावना अंगडाई लेने लगी। दिल्ली में आयोजित देशभक्त नेताओं के उस सम्मेलन में, जिसमें तात्या टोपे भी उपस्थित थे, हुकुमचंद जी उपस्थित थे। बहादुरशाह जफर से उनके गहरे सम्बन्ध पहले ही थे अतः आपने अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने की पेशकश की। आपने उपस्थित नेताओं और बहादुरशाह जफर को विश्वास दिलाया कि 'वे इस स्वतंत्रता संग्राम में अपना तन-मन और धन सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हैं।' हुकुमचंद जी की इस घोषणा के उत्तर में मुगल बादशाह ने लाला हुकुमचंद को विश्वास दिलाया कि वे अपनी सेना, गोला-बारूद तथा हर तरह की युद्ध सामग्री सहायता स्वरूप पहुँचायेंगे। हुकुमचंद जी इस आश्वासन को लेकर हांसी आ गये।
हांसी पहुंचते ही आपने देशभक्त वीरों को एकत्रित किया और जब अंग्रेजों की सेना हांसी होकर दिल्ली पर धावा बोलने जा रही थी, तब उस पर हमला किया और उसे भारी हानि पहुंचाई। आपके और आपके साथियों के पास जो युद्ध सामग्री थी वह अत्यन्त थोड़ी थी, हथियार भी साधारण किस्म के थे, दुर्भाग्य से जिस बादशाही सहायता का भरोसा आप किये बैठे थे, वह भी नहीं पहुँची, फिर भी आपके नेतृत्व में जो वीरतापूर्ण संघर्ष हुआ वह एक मिशाल है। इस घटना से आप हतोत्साहित नहीं हुए, अपितु अंग्रेजों को परास्त करने के उपाय खोजने लगे।
लाला हुकुमचंद व उनके साथी मिर्जा मुनीर बेग ने गुप्त रूप से एक पत्र फारसी भाषा में मुगल सम्राट को लिखा (कहा जाता है कि यह पत्र खून से लिखा गया था)*, जिसमें उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में पूर्ण सहायता का विश्वास दिलाया, साथ ही अंग्रेजों के विरुद्ध अपने घृणा के भाव व्यक्त किये थे और अपने लिए युद्ध-सामग्री की मांग की थी। लाला हुकुमचंद मुगल सम्राट के उत्तर की प्रतीक्षा करते हुए हांसी का प्रबन्ध स्वयं सम्हालने लगे। किन्तु दिल्ली से पत्र का उत्तर ही नहीं आया। इसी बीच दिल्ली पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया और मुगल सम्राट गिरफ्तार कर लिये गये।
___15 नवम्बर 1857 को बादशाह की व्यक्तिगत फाइलों की जांच के दौरान लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग के हस्ताक्षरों वाला वह पत्र अंग्रेजों के हाथ लग गया। यह पत्र दिल्ली के कमिश्नर श्री सी०एस० सॉडर्स ने हिसार के कमिश्नर श्री नव कार्टलैन्ड को भेज दिया और लिखा कि- 'इनके विरुद्ध शीघ्र ही कठोर कार्यवाही की जाये।'
इस पत्र की प्राप्ति के लिए हमने राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली के अनेक चक्कर लगाये, रजिस्टर्ड पत्र भी डाले, अन्त में अभिलेखागार ने अपने पत्र दि०6 नवम्बर 1995 संख्या मि० सं० 9/2/1/90 पी० ए० में लिखा कि-'इस विभाग में उक्त विषय सं सम्बन्धित विस्तृत खोज की गई, परन्तु वाछित पत्र उपलब्ध नहीं हो सका। आपको यह सुझाव दिया जाता है कि आप निदेशक अभिलेखागार, हरियाणा से सम्पर्क करें। शायद उनके पास वांछित सूचना प्राप्त हो सके।' निदेशक, अभिलेखागार, हरियाणा से सम्पर्क करने पर उन्होंने अपने पत्र 20 फरवरी 1996 संख्या 11/6-91 अभि० 453 में लिखा कि 'कार्यालय में आकर यहाँ उपलब्ध अभिलेखों में वांछित पत्र की खोज कर लें।'
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