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प्रथम खण्ड
101 हम पर टूट पड़ती; अत: मीटिंग खत्म होने पर गोयलीय थी। कारावास पिता जी आत्मशुद्धि के लिए गये थे। जी को गिरफ्तार करना मुनासिब समझा।" जेल से वे चुपचाप घर आ गये। लाला शंकर लाल
आदरणीय ताऊजी (लाला नन्हेमल जी) और और श्री आसफअली घर पर मिलने आये। पिताजी पिताजी दिल्ली में एक साथ गिरफ्तार हुए। दादी ने के त्याग एवं देशसेवा की सराहना की। श्री देवदास अपने बेटों को जी भरकर आशीर्वाद दिया और कहा, गाँधी ने गाँधी आश्रम में पिता जी को सर्विस देनी "मैंने तुम्हें इसीलिए (आज के लिए) जना था।" जनता चाही; किन्तु उन्होंने देश सेवा का मुआवजा स्वीकार ने जयजयकार की।
नहीं किया। ताऊजी और पिताजी दिल्ली के प्रथम उनका दिल्ली के क्रान्तिकारियों से बहुत घनिष्ठ नमक-सत्याग्रही थे। दिल्ली में सबसे पहले नमक सम्पर्क था। अपने ओजस्वी विचारों से वे आजीवन बनाकर उन्होंने बेचा। महामना मालवीय जी ने स्वयं कारावास जाने वाले थे। पार्लियामेन्ट में साइमन कमीशन उनसे नमक खरीदा था।
पर बम फेंका जाएगा, इसकी जानकारी उन्हें बहुत पिता जी ने 3 साल की 'सी' क्लास पहले से थी। उनके राजनैतिक शिष्यों में क्रान्तिकारी बामशक्कत कैद सहर्ष मंजर की। जेल में वे मंज बँटते. श्री विमल प्रसाद जैन और श्री रामसिंह प्रमुख हैं। चक्की चलाते। छह माह पिताजी ने रोटी नमक और वे श्री अर्जुनलाल जी सेठी से बहुत प्रभावित पानी से लगाकर खायी। उनके मौन सत्याग्रह पर जेल थे। सेठीजी पर उनके लिखे संस्मरण ('जैन जागरण अधिकारियों का ध्यान गया। अलग से बिना प्याज की के अग्रदूत' भारतीय ज्ञानपीठ काशी) बहुत सजीव सब्जी बनने लगी। जेल में समय का उपयोग अध्ययन एवं मार्मिक बने हैं।' में किया। सर इकबाल की 'बांगेदरा' और 'बालेजबरील' गोयलीय जी लगभग 15 वर्ष भारतीय साहित्य जल म पढ़ डाली। अल्लामा इकबाल का की प्रसिद्ध प्रकाशिका संस्था. भारतीय ज्ञानपीठ के 'कलाम-ओ-फलसफा', उनकी भाषा, वाणी और अवैतनिक मंत्री रहे। यहीं उन्होंने ज्ञानपीठ की प्रसिद्ध जिन्दगी का ओढ़ना बिछौना हो गया। मास्टर काबुलसिंह पत्रिका 'ज्ञानोदय' का सम्पादन किया। वे 'वीर' और जी और कौमी श्री गोपालसिंह उनके मौण्टगुमरी और 'अनेकान्त' के भी सम्पादक रहे। गोयलीय जी अपने मियाँवली जेल के खास साथियों में थे। शहीदों के जीवन में कितने ईमानदार थे यह बताने के लिए शहीद भगतसिंह की सीट पर पिताजी को 12 घंटे रहने 'विकास' और 'नया जीवन' के सम्पादक श्री अखिलेश का फख हासिल है।
शर्मा का निम्न संस्मरण ही पर्याप्त है। ___कारावास के अनुभवों को पिता ने अपनी “सन् 1953 में भारतीय ज्ञानपीठ कार्यालय कहानी की पुस्तकों 'गहरे पानी पैठ', 'जिन खोजा (काशी) का जाना हुआ। वहाँ गोयलीयजी डालमिया तिन पाइयां', 'कुछ मोती कुछ सीप' और 'लो कहानी नगर से पधारे हुए थे। गोयलीयजी अपने कार्यालय में सुनो' (सभी भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित) थे। आराम का वक्त था। वे अपने बिस्तरे पर विश्राम में पिरोया है। ये अनुभव अब साहित्य की बहुमूल्य कर रहे थे। उसी समय 'ज्ञानपीठ' के तत्कालीन थाती हैं।
मैंनेजर आये। आदेशानुसार तकिये के पास रखा उनके जेल से छूटने का दिल्ली वासी बहुत लिफाफा और रखी हुई दुअन्नी उठा ली। मुझे लिफाफे बेताबी से इन्तजार कर रहे थे। भव्य स्वागत योजना पर रखी दुअन्नी की बात समझ में नहीं आयी।
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