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स्वतंत्रता संग्राम में जैन आपत्ति का संकेत समझ भवानीदास जी दिल्ली ठिकाने की कामदारी का पद सम्भालना पड़ा। अभी छोड़कर जयपुर चले गये।
आप पूरी तरह से काम सम्भाल भी नहीं पाये थे कि जयपुर में भवानीदास जी ने अपना दूसरा चौमूं ठिकाने में ए0जी0जी0 का पदार्पण हुआ। स्टेट विवाह किया और उससे श्री जवाहरलाल सेठी का ने औकात से भी ज्यादा उसका स्वागत किया, फिर जन्म हुआ। जवाहरलाल जी ने मैट्रिक तक शिक्षा भी उसने कह ही दिया, 'These are Rustics (ये प्राप्त की और जयपुर राज्य के चौD ठिकाने के गंवार हैं)। सेठी जी के हृदय पर अंग्रेजी राज्य का कामदार (दीवान) और कौन्सिल के सेक्रेटरी पद पर यह पहला आघात था। नियुक्त हुए, उनका विवाह जयपुर राज्य के प्रतिष्ठित सेठी जी का विवाह 1903 के आसपास श्री
और सम्मानित श्री मोहनलाल नाजिम की पुत्री पांचो हमनाम की पुत्री गुलाबदेवी से हुआ। 1904 में देवी से हुआ, जिनकी कोख से श्री अर्जुनलाल सेठी उनका पहला पुत्र प्रकाश हुआ जो 1924 में अचानक का जन्म हुआ।
स्वर्ग सिधार गया। उनकी 6 संतानें और हुईं। जिनमें छह फुट लम्बा कद, चौड़ा वक्ष, गेहुँआ रंग, चार पुत्रियां और 2 पुत्र हैं। चिपके हुए गाल, सुतवां नाक, चमकीली आंखें, सेठी जी के सहपाठियों में सप्रसिद्ध लेखक ऊँचा माथा, सुन्दर चश्मा, खद्दर का ढीला-ढाला श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरी भी थे। 1904 में सेठी जी कुर्ता, सिर पर टोपी, यही पहचान थी उन दिनों श्री दिगम्बर जैन महासभा द्वारा संचालित मथुरा (उ0प्र0) सेठी की।
के विद्यालय में शिक्षक हो गये। 1905 में उन्होंने सेठी जी में बाल्यावस्था से ही लोकसेवा के बंगाल के स्वदेशी आन्दोलन में भाग लिया वे सूरत चिह्न प्रकट होने लगे थे। घर आया भिक्षु कभी की तूफानी कांग्रेस में भी शामिल हुए। खाली हाथ नहीं जाता था। सभाओं में व्याख्यान, 1907 में सेठी जी ने जयपुर में जैन विद्यालय नाटकों में भाग, जैन प्रदीप का प्रकाशन, विद्या की स्थापना की। कहने को तो यह विद्यालय था, पर प्रचारिणी सभा की स्थापना, साथी बालकों पर अनुशासन, वास्तव में यह क्रान्तिकारियों की टकसाल थी। अमर हिन्दी जैन गजट में लेखों का प्रकाशन आदि कार्य शहीद मोतीचंद, क्रान्तिकारी माणिकचंद, जयचंद, आपने लगभग 13-14 वर्ष की उम्र में ही प्रारम्भ देवचंद (आचार्य समन्तभद्र). जोरावर सिंह आदि कर डाले थे।
इसी विद्यालय के छात्र थे। स्वतंत्र राष्ट्र के उपासक संस्कत की शिक्षा आपको घर पर ही प्राप्त हुई जैन-अजैन इसमें अध्ययन करते थे। इस विद्यालय का थी। जैनधर्म की शिक्षा के सन्दर्भ में श्री चिमनलाल महत्त्व इसलिए और बढ़ जाता है कि उस समय काशी वक्ता को आप अपना गुरु मानते थे। संस्कृत, प्राकृत, विद्यापीठ या काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे राष्ट्रीय अंग्रेजी, फारसी, हिन्दी, अरबी, पालि, उर्दू आदि चेतना सम्पन्न विद्यालयों की स्थापना नहीं हुई थी। भाषाओं पर आपका समान अधिकार था।
1905 से 1912 तक के सभी क्रान्तिकारी सेठी जी ने 1898 में मैट्रिक और 1902 में आन्दोलनों में सेठी जी ने भाग लिया। आरा मंदिर के बी0ए)पास किया। उन दिनों बी0ए0पास बड़ी मुश्किल महन्त की हत्या में आप प्रमुख अभियुक्त थे से मिलते थे। आपकी जयपुर राज्य में निजामत (इस घटना का विशेष विवरण अमर शहीद मोतीचंद (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) पद पर नियुक्ति होने वाली थी के परिचय में देखें)। उत्तर भारत का सबसे बड़ा कि 1902 में ही पिता जी की मृत्यु हो जाने से चौमूं काण्ड, जो 'दिल्ली षडयन्त्र' के नाम से जाना जाता
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