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प्रथम खण्ड
103 बटोरकर रख सकें, तो शायद इसी बटोरनमें कुछ
श्री अयोध्याप्रसाद जैन जवाहरपारे भी आगे की पीढ़ी के हाथ लग जाएँ'। श्री अयोध्याप्रसाद जैन का जन्म 1916 में
_ 'जैन जागरण के अग्रदूत' को वे 4 भागों में राजगढ़ (म0प्र0) में हुआ। आपके पिता श्री मोहनलाल निकालना चाहते थे। पर एक ही निकल पाया। उनका जी थे। आपने 1930 के जंगल सत्याग्रह में भाग लेने अन्य साहित्य है
के कारण 4 माह 18 दिन का कारावास बिलासपर प्रकाशित-- 1. मौर्य साम्राज्य के जैन वीर, जेल में भोगा। पुलिस द्वारा मारपीट किये जाने के 2. राजपूताने के जैन वीर, 3. 'दास'-पुष्पांजलि, कारण हाथ की उंगलियों को क्षति पहुंची। इतना ही 4. शेर-ओ-शायरी, 5. शेर-ओ-सुखन (5 भाग), नहीं आपको 15 दिन गुनहखाने की सजा भी हुई। 6. शाइरी के नयेदौर (5 भाग), 7. शाइरी के नये 30-5-1996 को आपका निधन हो गया। मोड (5 भाग), 8. नग्मये हरम, 9. उस्तादाना कमाल, आ)-(1) म) प्र0 स्व) सै0, भाग 3, पृष्ठ 207, 10. हँसो तो फूल झंडे, 11. गहरे पानी पैठ, 12. जिन (2)पत्र- डॉ0 नन्दलाल जैन रीवां, दि0 13-6-1996 खोजा तिन पाइयाँ, 13. कुछ मोती कुछ सीप, 14. लो कहानी सुनो, 15. मुगल बादशाहों की कहानी खुद
श्री अर्जुनलाल सेठी उनकी जुबानी।
क्रान्तिकारी, देशभक्त, सुधारवादी, समाजसेवी, __ अप्रकाशित-1. शराफत नही छोडूंगा, 2. हैदराबाद
स्वतंत्रचेता, अध्यापक, लेखक, कवि, पत्रकार, वक्ता, दरबार के रहस्य, 3. पाकिस्तान के निर्माताओं की
बहुभाषाविद्, दारिद्र्यव्रती, कहानी खुद उनकी जबानी, 4. उमर खैय्याम की
जैनधर्म, गीता और इस्लाम रुबाइयात, 5. बेदाग हीरे-विषयवार अशआ
के उद्भट विद्वान् पण्डित (2 भागों में)।
अर्जुनलाल सेठी का जन्म गोयलीय जी को जीवन में अनेक
9 सितंबर 1880 ई0 को पुरस्कार/ सम्मान मिले। जिनमें प्रमुख हैं- उत्तरप्रदेश
जयपुर (राजस्थान) में हुआ। सरकार द्वारा 'शेर ओ सुखन', 'शेर-ओ-शाइरी' तथा
अर्जुनलाल सेठी के 'कुछ मोती कुछ सीप' पर पुरस्कार। हरियाणा सरकार पिता का नाम श्री जवाहर लाल सेठी और पितामह द्वारा 'मगल बादशाहों की कहानी खद उनकी का नाम श्री भवानीदास सेठी था। भवानीदास सेठी जबानी' पर पुरस्कार। चण्डीगढ में दशाला ओढाकर दिल्ली (वैद्यवाड़ा) में रहते थे। अन्तिम मुगल बादशाह तथा 500/- की राशि भेंटकर सार्वजनिक सम्मान. बहादुर शाह जफर के शहजादों के साथ उनके मैत्री केन्द्र तथा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानी सम्बन्ध थे। सेठी जी का कारोबार गुमाश्ते देखते थे, होने से ताम्रपत्र से सम्मान आदि।
फिर भी अपने प्रभाव और परिचय के बल गोयलीय जी का जीवन एक ऐसे तपस्वी और पर उनका अच्छा कारोबार चलता था। पत्नी और साधक का जीवन रहा है जिसने जीवन में आये बच्चे के निधन के बाद 1845 ई0 में आपको झंझावातों को चुपचाप सहा और आपत्तियों का विषपान यकायक स्वप्न दिखाई देने लगे। स्वप्न में कोई करते हुए भी साहित्यामृत प्रदान किया।
बार-बार दिल्ली छोड़ने का आग्रह करने लगा। पहले ___आ- (1) तीर्थङ्कर, नव-दिस) 1977, (2) जै0 जा0 तो कोई ध्यान नहीं दिया गया, किन्तु बार-बार जब अ), (3) विद्वत् अभिनन्दन ग्रन्थ, पृष्ठ 179, (4) दिवंगत हिन्दी सेवी, भाग । पृष्ठ 58 आदि, (5) जैन सन्देश, अगस्त 1990" यही वाक्य दुहराया जाने लगा तो इसे आने वाली
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