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स्वतंत्रता संग्राम में जैन रहे। 1942 के आन्दोलन में आप एक रात अचानक करते थे। कहा जाता है कि आपके दादा दिगम्बरावस्था गिरफ्तार कर लिए गये और खण्डवा और जबलपुर में जिन दर्शन करते थे। जब आप साढ़े तीन वर्ष के की जेलों में लगभग 1 वर्ष तक रहे।
थे तब दादा जी का देहावसान होने से आपकी आ)- (1)-म0 प्र0 स्व0 सै), भाग 4, पृष्ठ 9 (2)-जै0 दादी आपको लेकर कोसीकलां (मथुरा) उ0प्र0 में स) रा) अ), पृष्ठ 74
आ गई थीं। श्री अमोलकचंद जैन
गोयलीय जी की प्रारम्भिक शिक्षा चौरासी श्री अमोलकचंद जैन का जन्म 1916 में रीवां (मथुरा) में हुई जहां उन्होंने मध्यमा तक अध्ययन (म0प्र0) में हुआ, आपके पिता का नाम श्री लक्ष्मीचंद किया। आपकी आजीविका और राजनीति में प्रवेश जैन था। आपने माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। आप
के संदर्भ में आपके पुत्र श्री श्रीकान्त गोयलीय ने जो 1935 से 1942 तक आंदोलनों में सक्रिय रहे। इस संस्मरण (तीर्थङ्कर नव0-दि0 1977) लिखा है। उसे दौरान आपने भूमिगत रहकर आंदोलनों को गति प्रदान हम यहाँ यथावत उद्धृत कर रहे हैं। की। आपने सुचारु रूप से पार्टी का संगठनात्मक 'अपने पूर्वजों के नाम को रोशन करने के कार्य किया और अंग्रेजी सरकार को दिखा दिया कि लिए पिता जी दिल्ली आ गये। बाबा की बुआ भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक देश-प्रेमी है। (बैरिस्टर चम्पतराय जी की बहन मीरो) के
आपकी अनेक पुस्तकें शासन ने जब्त कर ली। वात्सल्यपूर्ण निर्देशन में उन्होंने एक छोटा सा मकान स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आप व्यावसायिक एवं लिया और बजाजे का पुश्तैनी कार्य संभाला। उनकी धार्मिक कार्यों में अपनी रुचि अनुसार संलग्न हैं। मिठास और ईमानदारी पर ग्राहक रीझे रहते थे। आ0-म) प्र) स्व0 सै0, 5/255
कारोबार चल निकला। सुबह-शाम सामायिक, स्वाध्याय
और जिन-दर्शन उनका स्वभाव हो गया। श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय
__ पहाड़ी धीरज (दिल्ली) में ताऊजी (श्री नन्हेंमल सिर पर टोपी, मंझोला कद, कसरती देह, जी जैन) के सहयोग से 'जैन संगठन लाइब्रेरी सभा' गेहुआ रंग, गठे हुए अंग, भरी हुई सजग मुखाकृति, की स्थापना की और उसके मंच से सामाजिक, विरलश्मश्रु, वाणी में ओज, शैली में गम्भीरता और राजनैतिक और साहित्यिक उत्सव किये। हिन्दी- उर्द
निरालापन, यही व्यक्तित्व था साहित्य एवं भारतीय इतिहास के उद्धरण उनके भाषणों वाणी के जादूगर श्रद्धेय श्री में प्रवाह लाते। वे वाणी के जादूगर हो गये। अयोध्याप्रसाद गोयलीय का। दिल्ली के पहाडी धीरज और चाँदनी चौक ने
जैन समाज में जागृति उन्हें अपना राजनैतिक नेता माना। एक बार वे चाँदनी का शंखनाद करने वाले चौक की विशाल जनसभा में धाराप्रवाह भाषण दे रहे 'वीर, अनेकान्त' जैसे प्रगतिवादी थे। 'देहलवी टकसाली जुबान और मौके के चुस्त शेर'
' पत्रों के सम्पादक गोयलीय भीड़ को भारतमाता की बेड़ियाँ तोड़ने पर जोश भर जी का जन्म 7 दिसम्बर 1902 को वर्तमान हरियाणा रहे थे। पुलिस- उच्चाधिकारी ने अदालत में कहा था के बादशाहपुर, जिला-गुडगांवा में हुआ था। आपके - "गोयलीय साहब को सभा में गिरफ्तार करना बहुत पिता श्री रामशरणदास खानदानी बजाजे का व्यवसाय मुश्किल था। आप अवाम पर छाये हुए थे। पूरी भीड़
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