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स्वतंत्रता संग्राम में जैन में अध्यापन कार्य किया। 1989 से 1992 तक आप उन्हें देखकर डर गया, फलत: मंदिर के पास से ही प्राच्य प्राकृत संस्कृत विद्यापीठ, अहमदनगर (महाराष्ट्र) मैंने पिस्तौलें गंगा में फेंक दी। सी0 आई0 डी0 के लोगों में रहे।
ने पहले मुझे गालियां दीं फिर रात नौ बजे पुलिस आई जैन संस्कृत साहित्य के सर्वोत्कृष्ट विद्वान् और मुझे व अन्य 15-20 छात्रों को गिरफ्तार करके प) जी ने द्रव्यसंग्रह, चन्द्रप्रभचरितम्, तत्त्वसंसिद्धि ले जाने लगी। मुहल्ले के लोग मेरे समर्थन में बाहर जैसे दुरूह ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया है। अनेक निकल आये। सभी ने कहा “यह लड़का बड़ा भोला अनुसन्धानपरक शोध-लेख आपके प्रकाशित हो चुके है यह तो बाहर भी नहीं निकलता।" पर पुलिस नहीं हैं। अस्सी वर्ष की उम्र में भी आप साहित्य-साधना मानी। मुझे 21 दिन हवालात की सजा दी गई थी।' में संलग्न हैं। हाल ही में आपको 'श्रुत संवर्धन ट्रस्ट' 'अपने जेल जीवन के कुछ संस्मरण सुनायें' द्वारा इकतीस हजार के पुरस्कार से सम्मानित किया हमारे ऐसा कहने पर पं0 जी बोले-'हवालात में गया है।
बी0 एच) यू0 के अशोक, जो 16 वर्ष के थे और बी0 दिनांक 25-5-97 को वाराणसी में भगवान् एस0 सी0 के छात्र थे, हमारे साथ ही बन्द हुए थे प्रात: पार्श्वनाथ के जन्म स्थान भेलूपुर जैन धर्मशाला में उनके पिता आये और उनका तथा 4 अन्य हम लोगों वयोवृद्ध और कृशकाय पूज्य पं0 जी से हमने एक का भोजन लाये, उस दिन तो शान्ति से भोजन किया। साक्षात्कार लिया। इस अवसर पर डॉ कमलेश कुमार, बाद में जेल में वैसा भोजन नसीब नहीं हुआ।' पं0 जी डॉ) फूलचंद प्रेमी, डॉ.) सुरेशचंद जैन तथा पं0 जी कुछ द्रवित से होकर बोले-'भैय्या! जेल तो जेल है, के सुपुत्र श्री अशोक कुमार जैन भी मौजूद थे। दु:ख ही दु:ख था उन दिनों जेलों में। आज की जेलें
हमारे यह प्रश्न करने पर कि-'आप स्वतंत्रता तो सुनते हैं बहुत अच्छी हैं। उन दिनों राजनैतिक आन्दोलन में कैसे कूद पड़े' श्रद्वेय पं0 जी ने कहा कि कैदियों तक को मार खानी पड़ती थी। मैं तो एक समय 'मैं ही क्या 1942 के आन्दोलन में स्याद्वाद भोजन करता था। कम्बल ऐसे थे कि पहली रात जो महाविद्यालय, वाराणसी के शत-प्रतिशत छात्र आंदोलन दो कम्बल मिले थे उनमें एक बिछाया दूसरा ओढ़ा। में सक्रिय थे। मैं स्याद्वाद महाविद्यालय का सबसे सीध जब लेटा तो लगा कि आलपिनें चुभ रहीं हैं।' । छात्र था। मैं बाहर बहुत कम जाता था इसलिए मुझे प) जी ने आगे कहा- 'बाद में हमें श्री हरिश्चन्द्र ऐसे काम सौंपे जाते थे जो अन्दर रहकर ही करने पड़ें। वकील, श्री गणेशदास जैन रहीस व एक बैरिस्टर छुड़ाने मैं सीधा और भोला-भाला था, अत: विद्यालय के गये थे।'
अधिकारी व पुलिस मुझ पर क्रान्तिकारी होने का अन्त में मैंने एक प्रश्न और कर दिया 'पं0 जी विश्वास नहीं करते थे। एक बार मुझे छह पिस्तौलें आपके साथ पं0 खुशाल चंद गोरावाला जी भी थे, जो सुरक्षा के लिए सांपी गईं और कहा गया कि छेदीलाल बाद में सम्पूर्णानन्द जी के खास व्यक्ति रहे, राजनैतिक के मंदिर (यह मंदिर आज भी भदैनी घाट, वाराणसी क्षेत्र में उनकी लम्बी पहुँच भी थी, फिर आपने पेंशन में एकदम गंगा के किनारे है। गंगा की लहरें बरसात लेना क्यों स्वीकार नहीं किया।' निस्पृही पं) जी में इसकी दीवारों का छूती जाती हैं) में छिपा आओ। बोले-'वह तो आज भी हो सकता है। पर न तब पेंशन मैं लेकर गया, भोला भाला होने से सी0 आई0 डी0 लेने की इच्छा हुई थी और न आज भी है। देश को के आदमियों तक न मुझ पर शंका नहीं की, पर मैं किया सो किया, उसे क्या भुनाना ?'
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