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प्रथम खण्ड
अमर शहीद भूपाल पंडित अगस्त 1957 के 'सन्मति' (मराठी) में प्रकाशित 'स्वातन्त्र्य युद्धांतील अहिंसेचा वीर हुतात्मा श्री भूपाल पंडित' संक्षिप्त लेख के अनुसार पाँच बार जेलयात्रा करने वाले और अन्त में पराधीनता की बेड़ियों से मुक्ति दिलाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले वीर हुतात्मा भूपाल पंडित असामान्य गुणों के धनी थे। वे अनायास ही किसी के कब्जे में आने वाले नहीं थे। उनमें गजब का बल था। अंधनिष्ठा और अंधभक्ति उनके पास नहीं थी। हर बात को सत्य और तर्क की कसौटी पर कसना उनका स्वभाव था। इसी स्वभाव के कारण देश की आजादी के क्रान्ति-यज्ञ में वे कूद पड़े।
__पंडित जी एक स्वतन्त्र बुद्धि के धारक, सत्याग्रह के लिए सदैव तैयार रहने वाले क्रान्तिकारी थे। अपने ऊपर दायर मुकदमा और शिवाजी दंगल मुकदमे के आरोपियों को छुड़ाने के लिए उन्होंने 'राम के पार' पर उपोषण शुरू किया था। खालसा में तीन बार, हैदराबाद संस्थान में एक बार और कोल्हापुर में एक बार इस
बार उन्होंने जेल यात्रायें कीं। उनका कार्यक्षेत्र सिर्फ महाराष्ट्र न होकर पूरा देश ही था। ब्रिटिश राज
ज जहाँ कहीं भी वे जुल्म और अत्याचार देखते, आपे से बाहर हो जाते और उस अत्याचार को दूर करने का प्रयत्न करते रहते। यही कारण था कि जब उन्होंने कोल्हापुर में रहते हुए हैदराबाद में अत्याचारों के सन्दर्भ में सुना तो तत्काल हैदराबाद गये और वहीं जेल में बन्द कर दिये गये। हैदराबाद जेल से छूटते ही कोल्हापुर आये और आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने न केवल स्वयं ही आन्दोलन में भाग लिया अपितु अन्य भी अनेक लोगों को आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, उनमें गजब की नेतृत्व क्षमता थी। पंडित जी रात-दिन जन-जागरण का कार्य करते रहे और अन्त में शहीद हुए। कुरुंदवाड संस्थान में मोर्चा निकालने में उनका बड़ा हाथ था। भूपाल पंडित सेनापति बापट जी के प्राण-यज्ञ-दल में एक बड़े सेनानी थे। सेनापति बापट जी भूपाल पंडित पर पुत्रवत् प्रेम करते थे। आ). सन्मति (मराठी), अगस्त 1957
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जिस संविधान का देशवासियों के जीवन, उनके लक्ष्यों और आकांक्षाओं से कोई सरोकार नहीं होता, वह खोखला रह जाता है, उससे देशवासियों की अवनति होती है। लोगों के मन-मस्तिष्क को ऊँचे लक्ष्यों की ओर केन्द्रित करना संविधान का लक्ष्य होना चाहिए।
--पं0 जवाहर लाल नेहरू (संविधान सभा, 8 नवम्बर, 1948)
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