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स्वतंत्रता संग्राम में जैन इसी समय संविधान निर्मातृ सभा के लिए भी आप चुने
श्री अभयकुमार जैन गये जहां आपने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
श्री अभयकुमार जैन का जन्म 1912 में हुआ। आजादी के बाद देश के निर्माण में भी आपने आपके पिता का नाम श्री कल्याणदास था। कल्याणदास महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 में हुए प्रथम आम
। जी ग्राम-वैर, तहसील-मैहर चुनावों में आप सहारनपुर-मुजफ्फरनगर से लोकसभा
में कांग्रेस का काम गुप्त रूप के सदस्य चुने गये।
से करते थे। जबलपुर त्रिपुरी 1957 में भी आप संसद सदस्य
अधिवेशन में जाने से राजा सहारनपुर-मुजफ्फरनगर से चुने गये थे। केन्द्रीय सरकार
साहब नाराज हो गये और में आप पुनर्वास, खाद्य एवं कृषिमंत्री भी रहे थे।
लाखों रुपया, जो मैहर और 1961-64 में आप उ0प्र0 कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष,
बैर में दुकान का था, वसूल 1965-66 में केरल के राज्यपाल और 1968-74 में नहीं होने दिया और जो जमीन थी वह भी जब्त राज्यसभा सदस्य रहे थे। सहारनपुर में गूगों-बहरों के करके अपने नौकरों को दे दी। लिए एक विद्यालय की स्थापना भी आपने की थी। श्री जैन ने अपने परिचय में लिखा है- '1939 'सेवानिधि ट्रस्ट' के आप एकमात्र ट्रस्टी थे। 'यू0 पी0 में रक्षाबन्धन के समय पहला झंडा निकला, जबकि टिनेक्सी एक्ट' व 'रफी अहमद किदवई का जीवन उस समय शोर था, कि राजा सा) मैहर ने पुलिस को चरित्र' पुस्तकों के साथ-साथ आपके अनेक लेख आज्ञा दे दी है कि 'जो झंडा उठावे उसको गोली मार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। 2 जनवरी, 1977 दो।' हम लोग आजाद चौक मैहर में दीवानों की तरह को कन्सर जैसे असाध्य रोग से आपका देहावसान हो गया। झंडा लिये राष्ट्रगीत गाते मौत का इन्तजार कर रहे थे,
आ) (I)- जै0स0रा0अ0, (2)- स0स), I/ 146-188, एस0पी0 साल आये और मेरे सीने पर पिस्तौल लगाकर 538, 544,554 आदि, (3)- स0स0, 2:248-258, (4) उ0प्र0 जवा) पृ)-86. (5)- भारत को संविधान निर्मात गरजे कि 'तुमने झंडा किसकी आज्ञा से निकाला है। सभा का फाल्ड किया बड़ा चित्र इसी पुस्तक में देखें, जिसमें श्री मैंने कहा- 'आज्ञा गुलामों को लेनी पड़ती है, हम तो अजित प्रसाद जैन का चित्र है।
आजाद हैं'। इस पर एस0पी0 ने पकड़ लिया और श्री अबीरचंद जैन
झंडा मांगा परन्तु जब तक हम लोगों के हाथों में श्री अबीरचंद जैन, पत्र-श्री पन्नालाल का जन्म हथकड़ी नहीं पड़ी, झंडा लिये हुए चार हजार जनता 1900 में जबलपुर (म0प्र0) में हुआ। 1942 के का हमारा जुलूस दीवान नागेन्द्रनाथ के बंगले पर आन्दोलन में आप अपने पुत्र श्री हीरालाल द्वारा पहुंचा। दीवान ने एस0पी0 को बुरे शब्दों में गाली दी भूमिगत होकर तोड-फोड के कार्य करने और गिरफ्तार फिर हम लोगों को (छ: आदमियों को) कोतवाली न होने पर बंधक के रूप में बन्दी बनाये गये थे। जेल ले जाकर बन्द कर दिया गया। से पुत्र को आत्म समर्पण न करने की प्रेरणा देते रहे। फिर हम लोगों के ऊपर मुकदमा चला जिसमें अन्तत: श्री हीरालाल के गिरफ्तार होने पर 5 माह दो वर्ष की सजा तथा 100 रु0 जुर्माना सुना दिया बाद रिहा किये गये।
गया और हम लोग जेल भेज दिये गये। जेल में हम ___ आ॥ (1) म0 प्र0 स्व) सैः), भाग ।, पृष्ठ 29, (2). लोगों पर डाकुओं और कातिलों द्वारा नाना प्रकार के स्वा) सा) ज), पृप्त 83
अत्याचार होने लगे। अत्याचार सहन न होने पर हम
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