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प्रथम खण्ड
अमर शहीद हरिश्चन्द्र दगडोबा जैन भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में हैदराबाद मुक्ति संग्राम का भी बड़ा महत्त्व है। हैदराबाद को निजाम- राज से मुक्ति दिलाने के लिए भी देशप्रेमियों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी। इसी संग्राम के अमर शहीद हैं श्री हरिश्चन्द्र दगडोवा जैन। महाराष्ट्र के परभणी जिले के मानवत कस्बे में हरिश्चन्द्र जी सपरिवार रहते थे। 1937 में हरिश्चन्द्र जी के एक भाई को रझाकारों ने छल से मार दिया था। इतने पर भी हरिश्चन्द्र हतोत्साहित नहीं हुए। वे समय-समय पर राज्याधिकारियों से लोहा लेते रहे। हैदराबाद मुक्ति संग्राम के समय वे धर्माबाद (जिला-नांदेड) जाकर बस गये थे। वहाँ उन्होंने स्वामी रामानन्द तीर्थ जैसे प्रभावशाली नेताओं के नेतृत्व में काम किया।
स्वामी जी के प्रमुख साथी श्री गोविन्द राव पानसरे के सहकारी बनकर हरिश्चन्द्र जी आन्दोलन करते रहे। 1946 के अक्टूबर में निजाम सरकार ने गोविन्दराव तथा हरिश्चन्द्र जी को उनके अन्य साथियों के साथ हिरासत में ले लिया। जैसे-तैसे वहाँ से छूटकर सभी जा रहे थे कि धर्माबाद से 7-8 किलोमीटर कुंडलवाडी ग्राम में रझाकारों ने सबको घेर लिया। घटना स्थल पर ही श्री गोविन्दराव धराशाई हो गये। हरिश्चन्द्र जी भी मार से काफी जख्मी हो चुके थे, फलस्वरूप दो-तीन दिन बाद ही वे शहीद हो गये। हरिश्चन्द्र जी के पुत्र श्री मधुकर राव भी स्वतंत्रता सेनानी हैं।
आ0 (1) श्री मधुकर हरिश्चन्द्र जैन, मानवत द्वारा प्रेषित परिचय (2) भारतीय स्वातंत्र्यलढ्यातील जैनांचे योगदान (मराठी), पृ.) 154
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माता (देश) और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण देना ही में पसन्द करता हूँ।
मेरा फांसी पर लटकना ही मेरा संदेश होगा।
आपने केवल मेरी माता की ही बात सोची है, परन्तु मेरी माँ की भी माँ, हम सबकी माँ, भारत माता की बात नहीं सोची।
- अमर शहीद मोतीचंद
भूतदया जैनों का मुख्य तत्त्व है। मैं सब अहिंसावादी लोगों को जैन समझता हूँ।
मुझे दुनियां को कोई नई चीज नहीं सिखानी है। सत्य और अहिंसा अनादि काल से चले आये हैं।
__ - महात्मा गांधी
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