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प्रथम खण्ड
79 खिड़की से टकराकर मृत्यु होने की बात कहकर टाल दिया। इस घटना के साक्षी कुछ लोगों को ढूँढकर जब परिवार वालों ने पता लगाया तो. दो अंग्रेज सैनिकों को वाद-विवाद में हराने और उनके द्वारा प्राण-हनन का पता लगा जो चौधरी जी के स्वभाव से सत्य ही है।
यद्यपि 'परवार जैन समाज का इतिहास', पृष्ठ 519 एवं 'शहीद गाथा', पृष्ठ 28-30 में चौधरी जी को शहीद लिखा गया है। परन्तु 'मध्य प्रदेश के स्वतन्त्रता संग्राम सैनिक', भाग 2,पृष्ठ 87 पर उन्हें स्वतन्त्रता सेनानी ही लिखा गया है। यथा '.........सन् 1908 में बंग-भंग के समय से स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया। सन् 1917 में बन्दी। सन् 1922 में एक यात्रा में आकस्मिक स्वर्गवास।'
आ)-(1) शहीद गाथा, पृष्ठ 28-30, (2) प) जै() इ), पृ0 519, (3) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग-2, पृष्ठ 87, (4) चौथा संसार, इन्दौर 27-8-1997 (5) ज्ञानोदय, मई 1952 अंक
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प्राचीन पुरुषों के गुणों को कौन कह सकता यहाँ। सम्पूर्ण सागर नीर यों घट मध्य रह सकता कहाँ।
- राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त
विस्मए अज़मते माजी को न महम्मिल समझो। वो में जाग जाती हैं अक्सर इन अफसानों से।।
इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना। सर्वलोकधृतं गर्भं यथावत्संप्रकाशयेत्।।
स्वजातिपूर्वजानां तु यो न जानाति सम्भवम्। स भवेत् पुंश्चलीपुत्रसदृशः पितृवेदकः॥
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