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स्वतंत्रता संग्राम में जैन था तो पुलिस ने उसे रोका, इस पर कुछ कहा सुनी हुई और अचानक पुलिस ने लाठीचार्ज करना प्रारम्भ कर दिया। कन्धीलाल पर अनगिनत लाठियों के वार पड़े पर उन्होंने झण्डा अपनी छाती से लगाकर उसकी रक्षा की। पुलिस ने झण्डा छीनना चाहा, पर छीन नहीं सकी। लाठी का एक वार कन्धीलाल के सिर पर पड़ा और वह सदा-सदा के लिए भारत मैया की गोद में सो गये। ___ इधर जनता हिंसात्मक प्रतिशोध पर उतर आई। पर ग्राम के माननीय चौधरी बनवारी लाल राय के साहसिक हस्तक्षेप से मामला शान्त हुआ। 15 सितम्बर 1931 को कन्धीलाल की प्रथम पुण्यतिथि पर बलिदान दिवस मनाया गया और सिलोंडी के सत्याग्रह स्थल (गल्ला बाजार) पर विशाल समूह के बीच मालगुजार गंगाप्रसाद ने शहीद कन्धीलाल जैन की स्मृति में वट वृक्ष (बरगद) रोपा जो आज भी है। इसी सत्याग्रह स्थल पर 'जय स्तम्भ निर्माण समिति', सिलोंडी ने 1983 में शहीद-स्तम्भ निर्मित कराया है।
जबलपुर के वयोवृद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और 'मध्य प्रदेश स्वतंत्रता सेनानी संघ' के संस्थापक-मंत्री श्री रतन चंद जैन के निवास पर उनके दर्शनार्थ जब हम गये तो उपरोक्त सारा लिखित वर्णन उन्होंने हमें दिया। श्री जैन ने उपरोक्त वृत्तान्त श्री कन्धीलाल जैन के पारिवारिक जनों से मिलकर प्राप्त किया था, जो सम्प्रति जबलपुर में रहते हैं। शहीद स्तम्भ का चित्र जिसमें कन्धीलाल जी का नाम सबसे ऊपर है, इसी पुस्तक में प्रकाशित है।
__ आ0-(1) वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी श्री रतन चंद जैन, जबलपुर द्वारा प्रदत्त परिचय (2) शहीद स्तम्भ का चित्र जिसमें अमर शहीद कन्धीलाल का नाम सबसे ऊपर है।
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जैन इतिहास-विद्या अभी भी बहुत कुछ अविकसित एवं प्रारम्भिक अवस्था में है। सामग्री विपुल है, किन्तु इतस्ततः इतनी बिखरी हुई है कि उस सबको एकत्रित कर, शोध-खोजपूर्वक उसे व्यवस्थित करना और इतिहास निर्माण में उसका सम्यक् उपयोग करना एक-दो व्यक्तियों का कार्य नहीं है, वरन् किसी साधन सम्पन्न संस्था में कार्यकर्ताओं के सुगठित दल द्वारा कई दशकों में सम्पादित होने वाला कार्य है।
- सुप्रसिद्ध इतिहासविद् डॉ. ज्योति प्रसाद जैन
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