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प्रथम खण्ड
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अमर शहीद कन्धीलाल जैन
भारत की आजादी के इतिहास में 1930 का सविनय अवज्ञा आन्दोलन मील का पत्थर सिद्ध हुआ था। ग्यारह फरवरी 1930 को कांग्रेस कार्यकारिणी ने गाँधी जी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार दे दिया था। गाँधी जी ने बहुतेरे प्रयास किये कि वायसराय कांग्रेस की न्यायोचित माँगों को मान लें। जब बात नहीं बनी तो गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 को अपना ऐतिहासिक दाण्डी मार्च' प्रारम्भ किया। इस मार्च में गाँधी जी के साथ चुने हुए 79 अनुयायी गये थे। 200 मील की यात्रा गाँधी जी ने 24 दिन में पैदल चलकर पूरी की थी। इस यात्रा में महिलाओं का नेतृत्व सरला देवी साराबाई ने किया था (देखें - 'स्वराज्य और जैन महिलायें', पृ० 26, 'महिलायें और स्वराज्य' पृष्ठ 177 ) 1 6 अप्रैल 1930 को गांधी जी ने नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन का सूत्रपात किया था।
ध्यातव्य है कि सरकार ने नमक पर कर दुगुना कर दिया था। जब कि भारत जैसे गरीब देश की जनता का नमक सबसे अधिक काम आने वाला और सबसे अधिक सस्ता खाद्य है। गरीब जनता को जब कुछ नहीं मिलता तो वह नमक की एक डली के साथ ही अपना भोजन कर लेती है। निजी रूप समुद्र के पानी से नमक बनाना कानूनी जुर्म था। गाँधी जी द्वारा कानून तोड़ने के बाद प्रतीक स्वरूप जगह - जगह नमक बनाया जाने लगा और इस काले कानून को खुलेआम भंग किया गया। शराब बंदी ओर विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार भी इस आदोलन में शामिल किये गये। पुरुष और महिलायें इस आंदोलन में हजारों की संख्या में जेल गईं। लगभग 50-60 हजार लोग जेल गये । यहाँ तक कि सरकार को नई जेलें बनानी पड़ीं।
मध्य प्रदेश में नमक सत्याग्रह के साथ-साथ जंगल सत्याग्रह भी प्रारम्भ हुआ था, जो यहाँ की विशेष भौगोलिक परिस्थिति के अनुकूल था । यहाँ की जनता के लिए वनों का विशेष महत्त्व है, उस पर लगे हुए अन्याय पूर्ण प्रतिबन्ध ही विदेशी शासन के प्रतीक थे। म०प्र० में नमक बनाने का कोई स्थान नहीं, अत: यहाँ जनता ने 'जंगल-कानून' ' तोड़कर 'नमक- कानून' तोड़ा था। इसी कानून को तोड़ने वाले अमर शहीद कन्धीलाल जैन का जन्म 1894 में सिलोंड़ी (जबलपुर - मध्यप्रदेश) कस्बे के सेठ मटरूलाल के यहाँ हुआ। अन्य लोगों के साथ कन्धीलाल भी झण्डा उठाकर गाँव-गाँव घूमे और जँगल कानून भंग किया। पुलिस ने इन लोगों पर लाठियों और कोड़ों से प्रहार किये पर गिरफ्तार किसी को भी नहीं किया। इधर जनता ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई । सिलोंड़ी और आस-पास के लोगों ने पुलिस का सामाजिक बहिष्कार किया। जनता ने अंग्रेजी सिक्के (कल्दार) को मुद्रा मानने से इंकार कर दिया और सिलोंड़ी मण्डल को पूर्ण स्वतन्त्र घोषित कर दिया। गाँव की पुलिस चौकी के सिपाही भाग खड़े हुए और आला अफसरों को इसकी सूचना दी गई।
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अराजकता को दबाने के लिए जिले के अधिकारियों ने एस०डी०ओ० छत्तर सिंह को विशेष पुलिस बल के साथ भेजा और कोड़े मारने तथा लाठीचार्ज का अधिकार उसे दिया । छत्तर सिंह 12 सितम्बर 1930 को सिलोंड़ी पहुँचा और ग्राम में 'मार्शल लॉ' लागू कर दिया । खुलेआम जनता को मारा गया और तरह-तरह की धमकियां दी गईं। चुनौती भरे स्वर में छत्तर सिंह ने कहा कि 'है कोई माई का लाल, जो सत्याग्रह करने की कोशिश करे' कन्धीलाल ने इस चुनौती को स्वीकार किया। अपनी गृहस्थी और अबोध बच्चों की परवाह न कर उन्होंने 15 सितम्बर को संकीर्तन समापन के जुलूस का नेतृत्व किया, वे जुलूस के आगे-आगे नारे लगाते चल रहे थे। जब यह जुलूस पुलिस चौकी (वर्तमान में माध्यमिक कन्या पाठशाला भवन) की ओर बढ़ रहा