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प्रथम खण्ड
___73 अमर शहीद भूपाल अणस्कुरे भारतीय स्वातन्त्र्य-समर में गरीब-अमीर, छोटे-बड़े, बालक-जवान, जवान-वृद्ध, स्त्री-पुरुष, उद्योगपतिव्यवसायी, खेतिहर मजदूर, ग्राम-नगर निवासी, शिक्षित-अशिक्षित, सभी लोगों ने अपनी शक्त्यनुसार भरपूर सहयोग दिया। ज्यादातर तो ऐसे रहे जो अपना नाम प्रख्यात कराये बिना ही मातृभूमि की बलि-वेदी पर शहीद हो गये। सच कहें तो हमारी आजादी-अट्टालिका की नींव के पत्थर वे ही हैं। ऐसे शहीदों में श्री भूपाल अणस्कुरे का नाम अग्रगण्य है।
___ श्री भूपाल अण्णाप्पा अणस्कुरे या भूपाल अणस्कुरे का जन्म कोल्हापुर (महाराष्ट्र) जिले के ठिकपुर्ली ग्राम (ता० राधानगरी) में 1927 में हुआ। मराठी की छठी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने, जगह-जगह लगने वाले हाट-बाजारों में दाल-चावल बेचने का काम शुरू किया। उनकी गरीबी ने ही उन्हें इस प्रकार का कार्य करने को मजबूर किया, पर दिल में देशहित के लिए भी कुछ करने की तमन्ना थी। 'दिल की जो तमन्ना बलवती होती है, वह समय आने पर अपना रास्ता खोज लेती है' यह कहावत अणस्कुरे जी के सन्दर्भ में पूर्णत: चरितार्थ हुई। एक दिन सांगली के श्री पी० बी० पाटील से उनकी मुलाकात हुई, मुलाकात
में बढ़ी और परिचय प्रगाढ़ता में। इसी प्रगाढ़ता के कारण वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में भूमिगत रहकर कार्य करने लगे। दिन में प्रकट रूप में वे कुछ कर नहीं सकते थे अत: भूमिगत क्रान्तिकारियों को सहयोग करने का जिम्मा उन पर सौंपा गया। क्रान्तिकारियों तक खाना पहुँचाना, उनकी दवा आदि की व्यवस्था करना उनके मुख्य कार्य थे। कभी-कभी तो रात के दो-दो बजे तक स्वयं अपने हाथों से खाना बनाकर भूमिगत कार्यकर्ताओं तक पहुँचाते थे।
____ गाँव से कोल्हापुर आकर वे रहने लगे थे। इस निपट गरीबी में एक कमरे से बड़ा मकान लेना उनके लिए कदापि सम्भव नहीं था फिर भी उस छोटे से स्थान को भी देशहित समर्पित करने की उनकी तमन्ना थी। अणस्कुरे जी का यह एकाकी कमरा कोल्हापुर के नये पूल के पास संकरी गली में था। 'पुलिस को कभी यह कल्पना भी नहीं हो सकेगी कि इस प्रकार के मात्र एक कमरे वाले मकान में रहने वाला भी कोई अपने पास अस्त्र शस्त्र रखने का जोखिम उठायेगा।' यह सोचकर भूपाल जी ने अपने पास अस्त्र-शस्त्र रखना प्रारम्भ कर दिया। रात्रि के अँधेरे में भूमिगत क्रान्तिकारियों के पास अस्त्र-शस्त्र पहुँचाना उनका प्रमुख कार्य बन गया, पर पुलिस कब चूकने वाली थी। पुलिस की नजर उन पर पड़ी, अणस्कुरे जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा दायर किया गया।
पुलिस के अनगिनत अत्याचारों और गहन पिटाई से उनके अंग-अंग टूट गये। दायें हाथ की हड्डी फटकर उसमें पस पड़ गया, वेदना पर वेदना, अत्याचार पर अत्याचार, मार पर मार, यातनाओं पर यातनाएं। ऐसे में अणस्कुरे जी ने शायद एक ही बचने का उपाय सोचा, 'अभी पुलिस के गवाह बन जाओ, जज के सामने बयान बदल देंगे। कम से कम कुछ समय के लिए तो यातनाओं से छुटकारा मिलेगा, बाद में मौत तो निश्चित है ही।'
योजनानुसार वे 'माफी के साक्षीदार' (पुलिस के गवाह) बन गये। पुलिस द्वारा जानबूझकर उनकी बीमारी से की गई उपेक्षा, टूटा और निराश मन, अपनों से मिलने की चाह, मित्रों को भी सब कुछ बताने की इच्छा, ये सब भावनायें उन्हें झकझोर रहीं थीं। उन्होंने मित्रों से मिलने की इच्छा प्रकट की। बड़े प्रयत्न के बाद
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