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प्रथम खण्ड
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उन्होंने कहा- बड़े काम को सिद्ध करने के लिए अनेक ऐसे काम भी करने पड़ जाते हैं, जिनका करना सामान्यतया अपराध या अनुचित माना जाता है। जिन्होंने राज्य स्थापित किये हैं, उन्होंने सैकड़ों ही नहीं हजारों निर्दोषों की जाने ली थीं। इतिहास इस बात का साक्षी है। परन्तु आज तक क्या किसी इतिहासकार ने यह लिखा कि उन्होंने अनुचित काम किया था। समय आयगा तब हमारे काम भी उत्तम समझे जायेंगे।' (पृष्ठ-68)
(फाँसी से पूर्व) मैंने (वर्मा जी ने) पूछा-'अपने साथियों को या देशवासियों को कुछ सन्देश देना चाहते हैं?'
वे बोले -"मेरा फाँसी पर लटकना ही मेरा सन्देश होगा। मुझे फाँसी क्यों हुई? इसका कारण जानकर देशभक्त लोग कहेंगे, 'एक निर्दोष मारा गया', अंग्रेज के गुलाम कहेंगे- 'जैसा किया वैसा पाया'। सम्भव है कुछ जैनी लोग कहेंगे, 'जैनियों की नाक कटवा दिया।' पर जवान लोग, जिनके खून गरम हैं और जो अपनी जननी-जन्मभूमि से प्यार करते हैं, कुछ न बोलेंगे, मन ही मन संकल्प करेंगे कि, हम जब तक इस खून का बदला न लेंगे, अंग्रेजों को भारत से न निकालेंगे, तब तक चैन से न बैठेंगे।' उनकी यह प्रतिज्ञा मुझे स्वर्ग में भी संतोष देगी।" (पृष्ठ-72)
आ):- (I)Who's. who of Indian Martyrs. vol.1, Page 234 (2) जै0 स0 रा0 अ0 (3)जैन जागरण के अग्रदूत, (4) क्रान्तिवीर हुतात्मा मोतीचन्द्र (5)सन्मति (मराठी), दिसम्बर 1952 तथा अगस्त 1957 के अंक (6) राजस्थानी आजादी के दीवाने,पृष्ठ बी० 113-114 (7) पं० माणिक चंद जी चंवरे, कारजां के अनेक पत्र।
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अहिंसक युद्ध 'अहिंसक युद्ध' परस्पर विरोधी बात लगती है यह, पर इतिहास में एक ऐसा भी युद्ध हुआ जो पूर्णत: अहिंसक था। ऋषभदेव वैराग्य धारण कर जब तपस्यार्थ वन चले गये तब उनके दो पुत्रों भरत और बाहुबली के बीच राज्य विस्तार की सीमा को लेकर युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं। दोनों ओर की सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हो गईं। तब दोनों पक्षों के मंत्रियों ने परस्पर विचार किया कि ये दोनों भाई बलिष्ठ हैं, अतः क्यों न आपस में लड़कर हार-जीत का निर्णय कर लें, व्यर्थ सेना क्यों मारी जावे। मंत्रियों का प्रस्ताव मान दोनों में मल्ल, जल और दृष्टि युद्ध हुए, जिनमें बाहुबली विजयी हुए, पर उन्होंने जीतकर भी सन्यास ले लिया। अहिंसा के बल पर स्वराज्य प्राप्ति से इस घटना का औचित्य सिद्ध हो जाता है।
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