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स्वतंत्रता संग्राम में जैन के समय भी दमोह की जनता ने स्वतंत्रता के संघर्ष में अपने दो नवयुवकों का बलिदान देकर आजादी के दीप को प्रज्वलित किया। सिंघई प्रेमचंद और यशवंत सिंह नामक वे दो युवक हैं, जो दमोह में आजादी के संघर्ष में शहीद हो गये।'
25 अगस्त 1992 को मध्य प्रदेश के आवास एवं पर्यावरण राज्यमंत्री श्री जयन्त कुमार मलैया ने दमोह की एक सभा में घोषणा की थी कि- 'अमर शहीद यशवन्त सिंह और प्रेमचंद की मूर्तियां इसी साल दमोह में म0प्र0शासन के खर्चे से लगेंगी।' (देखें 'जनसत्ता' नई दिल्ली, 26 अगस्त 1992)
आ0 (1) म0 प्र0 स्व) सै0, भाग 2, पृष्ठ 85 तथा 77 (2) श्रद्धा सुमन, स्मारिका- युवक क्रान्ति संगठन, दमोह (3) श्री संतोष सिंघई एवं श्री प्रेमचंद विद्यार्थी, दमोह, द्वारा प्रेषित परिचय (4) शहीद गाथा, पृष्ठ 25-27 (5) प0 जै) इ), पृ0 517 (6) जनसत्ता, नई दिल्ली, 26 अगस्त 1992 (7) नवभारत, इन्दौर, 27-8-1997
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हमारा गौरव
पाठशाला में फर्नीचर बनाने का काम चल रहा था। कुछ लकड़ी के टुकड़े यहां-वहां पड़े थे, उनको उठाकर पं0 गोपालदास जी बरैया की पत्नी ने एक चौकी बनवा ली। पं0 जी ने पूछा-'यह चौकी कहां से आई?' पत्नी ने कहा 'लकड़ी के फालतू ढुकड़े पड़े थे, उनकी बनवा ली है।' पं0 जी ने कहा 'वह लकड़ी तो पाठशला की थी।' इतना कहकर उन्होंने मजदूर की मजदूरी और लकड़ी के दाम पाठशाला में जमा करा दिये।
छप्पन दिन का निराहार व्रत श्री अर्जुन लाल सेठी को उनके अपराध की सूचना दिये बिना जयपुर जेल में बंद कर दिया गया, बाद में बैलूर जेल भेज दिया गया, जहां उन्होंने दर्शन और पूजा के लिए जैन मूर्ति न दिये जाने के कारण छप्पन दिन का निराहार व्रत किया।
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