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स्वतंत्रता संग्राम में जैन
पत्र प्राप्त होते ही कलेक्टर एक सैनिक दस्ते को लेकर हांसी पहुंचे और हुकुमचंद तथा मिर्जा मुनीर बेग के मकानों पर छापे मारे गये। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया, साथ में हुकुमचंद जी के 13 वर्षीय भतीजे फकीर चंद को भी गिरफ्तार कर लिया गया। हिसार लाकर इन पर मुकदमा चला, एक सरसरी और दिखावटी कार्यवाही के पश्चात् 18 जनवरी 1858 को हिसार के मजिस्ट्रेट जॉन एकिंसन ने लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को फांसी की सजा सुना दी। फकीर चंद को मुक्त कर दिया गया।
19 जनवरी 1858 को लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को लाला हुकुमचंद के मकान के सामने (जहाँ नगर पालिका हांसी ने 22-1-1961 को इस शहीद की पावन स्मृति में 'अमर शहीद हुकुमचंद पार्क' की स्थापना की है। ) फांसी दे दी गई। क्रूरता की पराकाष्ठा तो तब हुई जब लाला जी के भतीजे फकीर चंद को, जिसे अदालत ने बरी कर दिया था, जबरदस्ती पकड़कर फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया।
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भारतवर्ष के इतिहास का वह क्रूरतम अध्याय था। अंग्रेजों की क्रोधाग्नि इतने से भी शान्त नहीं हुई। इनके रिश्तेदारों को इनके शव अन्तिम संस्कार हेतु नहीं दिये गये, अपितु उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए लाला हुकुमचंद के शव को जैनधर्म के विरुद्ध भंगियों द्वारा दफनाया गया और मिर्जा मुनीर बेग के शव को मुस्लिम परम्पराओं के विरुद्ध जला दिया गया।
शहीद होने के समय हुकुमचंद जी अपने दो पुत्रों को छोड़ गये थे जिनमें न्यामत सिंह की आयु आठ वर्ष और सुगनचंद की आयु मात्र उन्नीस दिन थी। आपकी धर्मपत्नी दोनों बच्चों को लेकर आश्रय के लिए गुप्त रूप से किसी सम्बन्धी के यहाँ चलीं गईं। प्रशासन उन्हें खोजता रहा पर सफल नहीं हुआ।
लाला जी के बाद उनकी सम्पत्ति कौड़ियों के भाव नीलाम कर दी गई। उनकी सम्पन्नता का परिचय इसी से मिल जाता है कि लगभग 9000 एकड़ जमीन उनके पास थी। अन्य वस्तुओं में लगभग 400 तोले सोना 3300 तोला चांदी, 1300 चांदी के सिक्के, 107 मोहरें आदि ।
हरियाणा के प्रसिद्ध कवि श्री उदय भानु 'हंस' ने ठीक ही लिखा है
'हांसी की सड़क विशाल थी, हो गई लहू से लाल थी । यह नर-पिशाच का काम था, बर्बरता का परिणाम था। श्री हुकुमचन्द रणवीर था, संग मिर्जा मुनीर बेग था । दोनों स्वदेश के भक्त थे, जनसेवा में अनुरक्त थे। कोल्हु में पिसवाये गये, टिकटी पर लटकाये गये। हिन्दू को दफनाया गया, मुस्लिम शव झुलसाया गया। कितने जन पकड़े घेरकर, फिर बड़ पीपल के पेड़ पर । कीलों से टँके गरीब थे, ईसा के नये सलीब थे। '
लाला हुकुमचन्द जैन जैसे अमर शहीदों पर केवल जैन समाज को ही नहीं सम्पूर्ण भारतीय समाज को गर्व है। लाला हुकुमचंद की स्मृति में हांसी नगरपालिका ने 1961 में अमर शहीद हुकुमचन्द पार्क बनवाया, जिसमें लाला जी की आदमकद प्रतिमा लगी है।
आ0- (1) Who's who of Indian Martyrs. Volume III. Page, 56, 57 (2) सन् सतावन के भूले-बिसरे शहीद, भाग 3, पृष्ठ 68 70 (3) डॉ० रत्नलाल जैन, हाँसी का आलेख (4) शोधादर्श, फरवरी 1986 (5) The Martyrs, Page 10-13 (6) जैन दर्पण, दिसम्बर 1995 (7) अमृतपुत्र, पृष्ठ 27 एवं 73
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