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स्वतंत्रता संग्राम में जैन मार्च 1947 में वेवेल के स्थान पर लार्ड माउण्टबेटन वाइसराय बनकर भारत आये थे। उन्होंने भारत-विभाजन घोषित कर दिया। जिन प्रान्तों में मुसलमानों का बहुमत था, उनको मिलाकर पाकिस्तान बना दिया गया। 14-15 अगस्त 1947 को मध्य रात्रि में भारत स्वतंत्र हो गया।
स्वतंत्रता के दिन जब पूरा देश सदियों की गुलामी से मुक्त होकर खुशियां मना रहा था तब शांति का मसीहा, अहिंसा का पुजारी, स्वतंत्रता आन्दोलन का सूत्रधार बंगाल में 'नोआखली' में दंगों के पीड़ितों के गहरे जख्मों पर मरहम पट्टी कर रहा था। बी0बी0सी0 के संवाददाता ने जब देश को सन्देश देने की बात गांधी जी से कही तो उन्होंने कहा- 'दुनियां से कह दो गांधी अंग्रेजी नहीं जानता।'
000 - राष्ट्रगान में जैन हमारे देश का राष्ट्रगान 'जनगणमन-अधिनायक जय हे' है। इसके रचयिता विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर हैं। इसका सर्वप्रथम गायन 27 दिसम्बर 1911 को 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के अधिवेशन में हुआ था। स्वतंत्रता के पश्चात् 24 जनवरी 1950 को यह राष्ट्रगान के रूप में स्वीकृत हुआ। इस गान में पाँच खण्ड हैं, किन्तु पहला खण्ड ही राष्ट्रगान के रूप में स्वीकृत है। इसके दूसरे खण्ड में जैन शब्द भी आया है। सम्पूर्ण राष्ट्रगान इस प्रकार हैजनगणमन-अधिनायक जय हे भारत-भाग्यविधाता। जनगण-पथपरिचायक जय हे भारत-भाग्यविधाता। पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय है।। विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधितरंग घोर तिमिरघन निबिड़ निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे तब शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे, जाग्रत छिल तब अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे।
गाहे तव जय गाथा। दु:स्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके, जनगण-मंगलदायक जय हे भारत-भाग्यविधाता।
स्नेहमयी तुमि माता। जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। जनगण-दु:खत्रायक जय हे भारत-भाग्यविधाता। अहरह तव आह्वान प्रचारित, शनि तव उदार वाणी जय हे,जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। हिंदु बौद्ध सिख जैन पारसिक मुसलमान रिव्रस्टानी रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व-उदयगिरिभाले, परब पश्चिम आसे तव सिंहासन - पाशे गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवन रस ढाले।
प्रेमहार हय गाथा। तव करुणारुण-रागे निद्रित भारत जागे जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारत-भाग्यविधाता।
तव चरणे नत माथा। जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। जय जय जय हे, जय राजेश्वर, भारत-भाग्यविधाता। पतन-अभ्युदय-बंधुर पन्था, युगयुगधावित यात्री, जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय, जय हे।। हे चिरसारथि, तव रथचक्रे-मखरित पथ दिन रात्रि दारुण-विप्लव- माझे , तव शंखध्वनि बाजे ,
संकटदु: खत्राता।
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