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प्रथम खण्ड
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बाग' में एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में भारी संख्या में स्त्री, पुरुष एवं बच्चे उपस्थित थे। सभा चल ही रही थी कि उसी समय जनरल डायर अपने सैनिकों को लेकर सभा स्थल पर पहुंचा एवं बिना किसी सूचना के सभा पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। गोलियां 10 मिनट तक तब तक चलती रहीं जब तक सैनिकों की गोलियां समाप्त नहीं हो गईं। इसके बाद सैनिक वहां से ऐसे चले गये जैसे कुछ हुआ ही नहीं। 10 मिनट के इस हादसे में एक हजार से अधिक स्वाधीनता प्रेमी मारे गये एवं दो हजार से अधिक घायल हुये। इसी बाग में एक कोने में एक कुआँ है। आदमी अपनी जान बचाने उसमें कूदते गये इस प्रकार वह कुआँ मनुष्यों को जीवित समाधि बन गया। बाग की दीवारों पर गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं। इस काण्ड की जाँच-समिति के सामने डायर ने बड़ी बेहूदगी से कहा था कि 'उसने यह सब जनता को सबक सिखाने के लिये किया है यदि सभा चालू रहती तो वह सबकी हत्या कर दता।'
जलियांवाला काण्ड की तीखी प्रतिक्रिया पूरे देश में हुई। सरकार का दमन-चक्र बढ़ता गया। पंजाब में सड़क पर लोगों को रेंगने के लिये मजबूर किया गया। सार्वजनिक स्थान पर कोड़े लगाये गये, अखबार बन्द कर दिये गये, संपादकों को गिरफ्तार कर लिया गया। नोबल पुरस्कार विजेता 'रवीन्द्रनाथ ठाकुर' ने. जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने 'सर' को उपाधि से विभषित किया था, वाइसराय को पत्र लिखकर सर की उपाधि वापस कर दी।
अगस्त 1919 में कांग्रेस का अधिवेशन अमृतसर में हुआ। अमृतसर में ही जलियांवाला बाग है। अधिवेशन की अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की। पहली बार अधिवेशन में भारी संख्या में किसानों ने भाग 'लया। 1920 में नागपुर अधिवेशन में गाँधी जी की प्रेरणा से 15000 प्रतिनिधियों की उपस्थिति में कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया। अब संविधान की प्रथम धारा हुई, 'सभी न्यायोचित और शांतिमय साधनों में भारतीय जनता द्वारा स्वराज प्राप्त करना।' जनता के आन्दोलन को एक नया शब्द 'असहयोग आन्दोलन दया गया। यह नाम आन्दोलन के तरीके के कारण ही दिया गया था। इस आन्दोलन का जनमानस पर मार्गभक प्रभाव यह पड़ा कि जहां पहले लोग ब्रिटिश पदवियाँ प्राप्त करना अपना गौरव समझते थे वहां अब ये पदवियां वापिस की जाने लगीं। गांधी जी ने 'कैसरे हिन्द' पदक लौटा दिया। सुब्रह्मण्यम् अय्यर ने 'सर' की उपाधि वापिस कर दी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर पहले ही इसे वापिस कर चुके थे। विधान परिषदों के चुनाव में अधिकांश लोगों ने वोट नहीं डाले। हजारों विद्यार्थियों और अध्यापकों ने स्कूल, कॉलेज छोड़ दिय। राष्ट्रवादियों द्वारा अपनी संस्थायें प्रारम्भ की गई। दिल्ली में जामिया मिलिया और वाराणसी में काशी विद्यापीठ की स्थापना हुई। वर्तमान में दोनों विश्वविद्यालय हैं।
यह आन्दोलन काफी सफल रहा। 1921 के समाप्त होने तक 50 हजार से अधिक लोग जेलों में बंद हो गयं थे, इनमें अधिकांश देश के नेता थे। किन्तु प्रणेता जेल के बाहर थे। इसी समय केरल में किसानों ने अपना आन्दोलन इतना व्यापक किया कि उसे सरकार ने विद्रोह के रूप में माना। 'मोपला विद्रोह' के नाम से विख्यात इस विद्रोह को सेना की मदद से बर्बरता पूर्वक दबाया गया। 2000 से अधिक लोग मारे गये। करीब 15000 गिरफ्तार किये गय। अमानवीयता इस हद तक थी कि जब कैदियों को रेल के बैगन से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा रहा था तो इतने अधिक कैदी बैगन में लूंस दिये गये कि 67 मोपलाओं की दम
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