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स्वतंत्रता संग्राम में जैन घुटने से ही मृत्यु हो गई। इस विद्रोह में मोपलों ने भी भयंकर हिंसा की थी। उन्होंने न केवल अंग्रेजों को मारा था, अपितु हजारों हिन्दू स्वदेशवासियों को भी मौत के घाट उतार दिया था।
फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के 'चौरा-चौरी' स्थान में लोग एक प्रदर्शन में भाग ले रहे थे। छेडखानी की कोई वारदात न होने पर भी पलिस ने गोली चला दी। गस्से में आकर लोगों ने टेशन को घेर लिया, जहाँ भीड़ के दबाव के कारण गोली चलाने वाले पुलिसकर्मी अपनी सुरक्षा हेतु पहुंच गये थे. उन्होंने प्रवेश दरवाजे को. जो लकडी का था. भीतर से बंद कर लिया था। भीड ने पलिस स्टेशन में आग लगा दी, फलत: 22 व्यक्ति अन्दर ही जलकर मर गया
इस हिंसक काण्ड के कारण गांधीजी ने अपना आन्दोलन वापिस ले लिया। गांधीजी के इस निर्णय की व्यापक आलोचना हुई। विश्व इतिहास का यह पहला उदाहरण था कि आन्दोलन उस समय वापिस लिया गया जब वह अपनी चरम सीमा पर था। किन्तु बाद में यह सिद्ध हुआ कि गांधीजी का यह निर्णय उनके अद्वितीय नैतिक साहस और जनमानस में उनके गहरे प्रभाव को सिद्ध करने में समर्थ हुआ। सरकार ने इसका लाभ उठाकर मार्च 1922 में गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें छह साल की सजा सुनाई गई।
असहयोग आन्दोलन करीब 2 वर्ष तक देश को आंदोलित करता रहा। इस आन्दोलन से राष्ट्रीय आन्दोलन शहरों की सीमा को लांघकर गांव-गांव तक पहुंचा। हर वर्ग के लोग इसमें शामिल हो गये। एक नया नारा जो इस आन्दोलन में व्यापक रूप से लोकप्रिय हुआ, वह था -'हिन्दू- मुसलमान की जय', यह नारा अंग्रेजों की पृथकता की नीति का सार्वजनिक जवाब था।
आन्दोलन के वापिस लेने के बाद विधान परिषदों के संदर्भ में दो धारणायें उपजीं। एक थी उनसे अपने को हटाना एवं दुसरी थी विधान परिषदों में जाकर सरकार का प्रबल विरोध और सरकार द्वारा कानून न बना पाने की स्थिति निर्मित करना। दूसरी धारणा के लोगों ने अपना लक्ष्य प्राप्त भी किया। उन्होंने ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रस्तुत उनकी नीतियों तथा प्रस्तावों के संबंध में परिषट् की सम्मति प्राप्त करना लगभग असंभव कर दिया।
फरवरी 1924 में गांधी जी जेल से छूटे। उन्होंने खादी का प्रचार, हिन्दू मुस्लिम एकता मजबूत करना, अस्पृश्यता को दूर करना आदि कार्यक्रम प्रारम्भ किये। उन्होंने प्रत्यक कांग्रेसी को प्रतिमाह 2000 गज सूत कातने पर बल दिया। खादी का विकास ग्रामोत्थान कार्यक्रम के साथ जग-जागरण एवं आर्थिक स्वतंत्रता का मूलाधार बना। इसस सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वतंत्रता आन्दोलन का सन्देश पहुंचना प्रारम्भ हो गया।
असहयोग आन्दोलन को वापिस लिये जाने से युवा वर्ग में आक्रोश का भाव उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था। सचिन सान्याल, जोगेश चटर्जी जैसे लोगों ने मिलकर 'हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन' नामक संस्था की स्थापना की। इसका पहला धमाका हरदोई से लखनऊ जा रही रेल को काकोरी में रोककर शासकीय खजाना लूटकर, पार्टी के लिये धन इकट्ठा करने के रूप में हुआ। उस समय रेल ब्रिटिश शासन की प्रतीक थी। उसमें ऐसी घटना से उसकी सत्ता की शक्तिहीनता का संकेत था। जैसा स्वभाविक था, घटना के बाद क्रान्तिकारियों की जोर-शोर से तलाश हुई, कई लोग गिरफ्तार हुए, 'काकोरी षड्यंत्र' के तहत उन पर मुकदमा चला। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रोशनसिंह और राजेन्द्र लाहिड़ी को मृत्युदंड दिया गया। एक चर्चित सदस्य चन्द्रशेखर आजाद पकड़े नहीं जा सके, उन्होंने दूसरे क्रान्तिकारियों से मिलकर नये संगठन की
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