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प्रथम खण्ड
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भारतीयों के साथ किये जाने वाले अपमानजनक व्यवहार, रेल डाक-तार तथा अन्य वैज्ञानिक प्रयोगों की शुरूआत मन्दिरों का प्रबन्ध अपने हाथ में लेने, विधवा विवाह को कानूनी आधार प्रदान करने, सती प्रथा पर रोक लगाने, ईसाई बनने पर भी पैतृक सम्पत्ति को हिस्सा मिलने का कानून, सैनिकों को विदेश भेजने जैसे कार्यों ने भारतीय जनमानस तथा धार्मिक भावनाओं को आहत किया।
राजनैतिक क्षेत्र में डलहौजी नामक अंग्रेज गवर्नर जनरल की विलय नीति ने सर्वाधिक असंतोष फैलाया। डलहौजी के शासनकाल में सतारा, सम्भलपुर, उदयपुर, जैतपुर, झांसी तथा नागपुर को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया। अबध के नबाब वाजिद अली शाह, नाना साहब पेशवा बाजीराव के द्वितीय पुत्र) तथा मुगल सम्राट् बहादुर शाह द्वितीय के प्रति अंग्रेजों की नीति ने बहुत से शासकों को विरोधी बना दिया । प्रशासन में भारतीयों के साथ भेदभाव, न्याय प्रणाली में निहित दोष तथा भारतीयों की उपेक्षा ने असंतोष को और भड़काया।
सेना में भारतीयों की स्थिति बहुत खराब थी। वेतन तथा पदों के सम्बन्ध में भारतीयों को अंग्रेजों के बहुत नीचे रखा जाता था। अंग्रेज अधिकारी सामान्य गलतियों पर भी भारतीय सैनिकों को कठोर दण्ड देते थे। 1857 में चर्बी युक्त कारतूसों के प्रयोग के आदेश ने सैनिक असंतोष की अग्नि में पूर्णाहुति डाल दी और प्लासी युद्ध पश्चात् 100 वर्षों तक एकत्र हुए कारणों से विस्फोट हो गया, जिसे इतिहास में प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा गया और जिसका आरम्भ बैरकपुर की सैनिक छावनी में एक घटना से हुआ। 29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डे नामक भारतीय सैनिक ने चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग के विरोध में परेड के समय अंग्रेज अधिकारी की हत्या कर दी। मंगल पाण्डे पर मुकदमा चला और अन्ततः उसे फाँसी दे दी गई। मंगल पाण्डे के बलिदान की खबर से देशभर में सैनिक छावनियों में असंतोष चरम सीमा पर पहुँच गया। मेरठ छावनी में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया । चर्बीयुक्त कारतूसों का प्रयोग करने से मना करने पर सैनिकों को निःशस्त्र कर बन्दी बना लिया गया। 10 मई को सैनिकों ने खुली बगावत करके और अपने साथियों को कारागार से मुक्त कराकर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। सैनिकों ने लालकिले सहित महत्त्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा कर लिया और विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए बहादुरशाह जफर को सहमत कर लिया।
11 मई से 31 मई 1857 तक दिल्ली, फिरोजपुर, इटावा, बुलन्दशहर, मुरादाबाद, जून में ग्वालियर, झाँसी, इलाहाबाद, . फैजाबाद, लखनऊ, राजस्थान तथा मध्य भारत एवं जुलाई में इन्दौर, महू, सागर और पंजाब में विद्रोह फैल गया। अबध में बेगम हजरत महल, कानपुर में नाना साहब, इलाहाबाद में मौलवी लियाकत अली, जगदीशपुर में कुँअर अली तथा झाँसी में लक्ष्मीबाई ने विद्रोह का नेतृत्व किया। सितम्बर 1857 तक अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया और बहादुरशाह को देश से निर्वासित करके बर्मा भेज दिया। 19 जनवरी 1858 को बहादुर शाह जफर के सहयोगी लाला हुकुमचंद जैन, उनके तेरह वर्षीय भतीजे फकीर चंद और मिर्जा मुनीर बेग को फाँसी पर लटका दिया गया। 6 दिसम्बर तक कानपुर पर भी अंग्रेजों का फिर से कब्जा हो गया। बेगम हजरत महल तथा नाना साहब अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आये और नेपाल की ओर जाकर भूमिगत हो गये । झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए 18 जून 1858 को वीरगति को प्राप्त हुईं। लक्ष्मीबाई के बलिदान के चार दिन बाद ही 22 जून 1858 को ग्वालियर के सिंधिया राजा के खजांची अमरचंद बांठिया को लक्ष्मीबाई की सहायता करने के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया गया। तात्या टोपे को विश्वासघात करके पकड़ लिया गया और 18 अप्रैल 1859 को फाँसी पर लटका दिया गया।
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