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स्वतंत्रता संग्राम में जैन 'हमारे राज्य में जैनदर्शन और वैष्णवदर्शन के बीच किसी प्रकार का भेद नहीं है। जैन दर्शन पूर्ववत् पंचमहाशब्द और कलश का अधिकारी है और रहेगा। ऐसे बुक्काराय का प्रधानमंत्री और सेनापति जैन वीर बैचप था। वह और उसके तीन वीर पुत्र ही राज्य के प्रमुख सैन्य संचालक थे।
हरिहर द्वितीय (1377--1404) का राज्यकाल बैचप व उसके पुत्रों/पौत्रों के लौकिक तथा जैन धार्मिक क्रिया-कलापों से भरा है। सम्राट् की महारानी बुक्कवे जिनभक्त थीं। देवराय द्वितीय (1419-1446 ई)) के उपराजा कार्कल नरेश वीर पाण्ड्य ने 1432 में बाहुबली की प्रतिमा निर्मित करायी थी, जिसके प्रतिष्ठा महोत्सव समारोह में स्वयं देवराय सम्मिलित हुए थे। उस काल के प्रतिष्ठित जैन गुरु श्रुतमुनि की काव्यमय प्रशस्ति श्रवणबेलगोल की सिद्धर-बसदि के एक स्तम्भ पर 1433 में उत्कीर्ण की गई थी।
हरिहर द्वितीय के सामन्त एवं उपराजा कुलशेखर आलुपेन्द्रदेव ने 1385 में पार्श्वनाथ का मन्दिर मूडबिद्री में बनवाया था। तौलव देश की राजकुमारी देवमति ने श्रुतपंचमी व्रत के उद्यापन में धवल, जयधवल, महाधवल (महाधवल) की ताड़पत्रीय प्रतियां लिखाकर मूडबिद्री की सिद्धान्त-बसदि में स्थापित की थीं। सम्राट् कृष्णदेव राय (1509--1539) विजयपुर नरेशों में सर्वाधिक प्रतापी सम्राट् थे। उन्होंने अनेक जिनालयों को दान दिया था। दक्षिण भारत में अन्य राजाओं के आश्रय में भी जैनधर्म फला-फूला। जिनमें मंत्री पद्मनाभ, सेनापति मंगरस, रानी काललदेवी, वीरय्य नायक आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। मध्यकाल उत्तरार्ध (लगभग 1556-1755 ई०)
मुगल साम्राज्यकाल में जैनधर्म का ह्रास और विकास दोनों हुए। पानीपत के युद्ध में लोदी सुल्तानों को समाप्त करके दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार कर बाबर ने मुगलराज्य की नींव डाली थी। बाबर के बाद हुमायूं उसका उत्तराधिकारी बना। उसका पुत्र अकबर (1556-1605) मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था। रणकाराव, भारमल्ल, टोडरसाहू, हीरानन्द, कर्मचन्द बच्छावत आदि अनेक प्रतिष्ठित जैन व्यक्ति अकबर के कृपापात्र थे। आचार्य 'हीरविजय' की प्रसिद्धि सुनकर सम्राट ने 1581 ई0 में उन्हें आमन्त्रित करके 'जगद्गुरु' की उपाधि से विभूषित किया था। अकबर के समय अनेक जैन प्रभावक सन्त हुए, अनेक मन्दिरों का निर्माण हुआ और लगभग दो दर्जन जैन साहित्यकारों ने अपनी साहित्यिक कृतियों का सृजन किया। अकबर के मित्र और प्रमुख अमात्य अबुल फजल ने 'आइने अकबरी' में जैनों और जैनध र्म का विवरण दिया है। 'आइने अकबरी' में अकबर की कुछ उक्तियां संकलित है यथा- 'यह उचित नहीं है कि मनुष्य अपने उदर को पशओं की कब्र बनायें' आदि।
__ अकबर के पुत्र एवं उत्तराधिकारी जहाँगीर (1605-1627 ई)) जिनसिंहसूरि (यति मानसिंह) आदि जैन गुरुओं के साथ चर्चा किया करते थे। इनको उसने 'युगप्रधान' की उपाधि भी प्रदान की थी। इसी समय पण्डित बनारसी दास ने आगरा में विद्वद्गोष्ठी प्रारम्भ की थी। शाहजहाँ (1628-1658 ई0) के काल में दिल्ली में लालकिले के सामने लालमन्दिर का निर्माण हुआ था, जो उर्दू (सेना की छावनी) मन्दिर या लश्करी मन्दिर भी कहलाता था, क्योंकि वह शाही सेना के जैन सैनिकों एवं अन्य राज्यकर्मियों की प्रार्थना पर सम्राट के प्रश्रय में उसकी अनुमति-पूर्वक बना था। औरंगजेब (1658-1707 ई0) के शासन में मथुरा, वाराणसी, दिल्ली आदि के अनेक जैन मन्दिरों को तोड़कर मस्जिदें बनवा दी गयीं थीं।
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