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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
विरति! समझने का फल क्या? कि रुक जाए। विषयों के जोखिम को समझा ही नहीं, इसलिए वैसा करने से रुका नहीं।
यदि कोई भय रखने जैसा हो तो वह इस विषय का भय रखने जैसा है। इस जगत् में अन्य कोई भय रखने जैसी जगह है ही नहीं। इसलिए सावधान हो जाओ। इन साँप, बिच्छ्र
और बाघ से सावधान नहीं रहते? सावधान रहते हैं न? जब बाघ की बात आए, तब हमें उससे भय नहीं रखना हो, फिर भी उससे भय लगता है न? उसी तरह जब विषय की बात आए तो भय लगना चाहिए। जहाँ पर भय लगे, वहाँ पर क्या मज़े से खाना खाते हैं? नहीं। अतः जहाँ पर भय हो, वहाँ मज़ा नहीं होता। जगत् के लोग इस विषय को भयसहित भोगते होंगे? नहीं। लोग तो यह मज़े से भोगते हैं। जहाँ भय हो, वहाँ भोग ही नहीं सकते।।
कोई पूछे कि जलेबी खाऊँ? तो मैं कहूँगा कि वह अच्छी है, खाना आराम से। दहीबड़े खाना, सब खाना। इन सभी में स्वाद आता है। ज्ञानी को स्वाद समझ में आता है, लेकिन उन्हें इस स्वाद में, अच्छा या बुरा है, ऐसा नहीं होता कि यह होगा तभी चलेगा। विषय का तो ज्ञानीपुरुष को सपने में भी विचार नहीं आता। वह तो पाशवी विद्या है। मनुष्य में खुली पाशवता कहनी हो तो वह इतनी ही है। मनुष्यपन तो मोक्ष के लिए ही होना चाहिए।
अनंत जन्मों तक कमाई करे, तब जाकर उच्च गोत्र, उच्च कुल में जन्म होता है लेकिन फिर लक्ष्मी और विषय के पीछे अनंत जन्मों की कमाई खो देता है!!
परवशताएँ कैसे पुसाए? मोक्ष की इच्छा तो बहुत है, लेकिन मोक्ष का रास्ता नहीं मिल पाता। इसीलिए अनंत जन्मों से भटकते ही रहे हैं और बिना अवलंबन के जी नहीं पाते। इसीलिए उसे स्त्री वगैरह, सभी कुछ