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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
अधिकारी बनेगा। दोनों को नर्क में जाना पड़ेगा, दोनों को नर्क में साथ में रहना पड़ेगा, वापस ।
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प्रश्नकर्ता : ' विषयरूप अंकुरथी....' मतलब ?
दादाश्री : अंकुर मतलब अंदर बीज हो, वह विचार आए और उसमें तन्मयाकार हो जाए तो वह अंकुर कहलाता है। वह अंकुर फूटा कि गया... इसलिए हम तय करते हैं न कि विचार आने से पहले खींचकर बाहर फेंक देना । वह अंकुर फूटा कि फिर ज्ञान और ध्यान सबकुछ टूट जाता है, खत्म हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : इस अक्रम विज्ञान में भी ऐसा ही होता है ?
दादाश्री : ज्ञान और ध्यान मिट जाता है। विचार आए न तो सिर्फ ज्ञान और ध्यान ही नहीं, लेकिन आत्मा भी चला जाता है। क्रमिक में तो ज्ञान और ध्यान चला जाता है और अक्रम में तो, जो आत्मा दिया हुआ है, वह चला जाता है। अतः अंकुर तक नहीं ले जाना चाहिए ।
लिंक जारी, उसका जोखिम
इसमें है कुछ भी नहीं । ज्ञान प्राप्त हो जाने पर समझ में आ जाता है कि विषय में है कुछ भी नहीं ।
प्रश्नकर्ता: आप के ज्ञान के बाद हम इसी जन्म में विषय बीज से एकदम निर्ग्रथ हो सकते हैं ?
दादाश्री : सभी कुछ हो सकता है। अगले जन्म के लिए बीज नहीं डलेंगे। ये जो भी पुराने बीज हों, उन्हें आप धो देना, नए बीज नहीं डलेंगे।
प्रश्नकर्ता : यानी अगले जन्म में विषय का एक भी विचार नहीं आएगा ?
दादाश्री : नहीं आएगा। थोड़ा बहुत कच्चा रह गया होगा