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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
से मोह उत्पन्न होता है न ? यों ऐसे दृष्टि पड़े, वह सबसे पहले कपड़ों पर पड़ती है, तो तभी से मोह उत्पन्न होता है न ?
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दादाश्री : मूलतः तो खुद विषयी है, इसलिए कपड़े ज़्यादा मोहित करते हैं। खुद विषयी नहीं हो तो कपड़े मोहित नहीं कर पाएँगे। यहाँ अच्छे-अच्छे कपड़े बिछा दें तो क्या मोह उत्पन्न होगा ? यानी खुद को विषय का मज़ा और आनंद है, उसकी इच्छा है, इसलिए वैसा मोह उत्पन्न होता है। जो लोग विषय की इच्छा से रहित हों, उन्हें कैसे मोह उत्पन्न होगा ? यह मोह कौन उत्पन्न करता है? पिछले परिणाम मोह उत्पन्न करते हैं तो उन्हें आप धो देना । बाकी कपड़े बेचारे क्या करें ? पहले का बीज डाला हुआ है, यह उसी का परिणाम आया है। लेकिन उन सभी पर मोह नहीं होता । जहाँ हिसाब हो वहीं मोह होता है। अन्यत्र मोह के नए बीज पड़ते ज़रूर है, लेकिन मोह नहीं होता । यह तो कपड़ों की वजह से मोह उत्पन्न होता है, नहीं तो अगर कपड़े निकाल दे तो काफी कुछ मोह कम हो जाएगा। सिर्फ अपनी ऊँची जाति में ही मोह कम हो जाएगा। यह तो बेचारे को कपड़ों की वजह से भ्रांति रहती है और कपड़ों के बिना देखेगा तो यों ही वैराग आ जाएगा। तभी तो दिगंबरियों की ऐसी खोज है न!
उपयोग जागृति से, टलता है मोह परिणाम
श्रीमद् राजचंद्र ने कहा है कि, 'देखत भूली टले तो सर्व दुःख नो क्षय थाय शास्त्रों में पढ़ते हैं कि स्त्री पर राग नहीं करना चाहिए और वापस स्त्री को देखते ही भूल जाते हैं। उसे 'देखत भूली' कहते हैं। मैंने तो आपको ऐसा ज्ञान दिया है कि अब आपमें 'देखत भूली' भी नहीं रही। आपको शुद्धात्मा दिखेगा । बाहर का पैकिंग कैसा भी हो, फिर भी पैकिंग से हमें क्या लेना देना ? पैकिंग तो सड़ जाएगी, जल जाएगी, पैकिंग से क्या पाओगे? इसलिए ज्ञान दिया है कि आप शुद्धात्मा देखो ताकि 'देखत भूली टले ।' देखत भूली टले' यानी क्या कि यह मिथ्या दृष्टि है, वह दृष्टि बदल जाए और
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