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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
चीजें बिल्कुल विरुद्ध, खराब हों फिर भी मान्यता जाती नहीं है न! अतः हमें निकालनी पड़ेंगी कि 'ऐसे नहीं' लेकिन यह गलत है। प्रश्नकर्ता : तो ऐसा कह सकते हैं कि अभी भी रुचि
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है।
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है । ये रोंग बिलीफें रह गई हैं अभी भी अंदर इसलिए निकाल कर देना है। लोगों के कहने से ‘इसमें सुख है' ऐसी रोंग बिलीफ जो बैठ गई है, वह इसमें रह गई है, वह जैसे-जैसे आएगी, वैसे-वैसे निकाल कर देंगे। प्रश्नकर्ता : इस बिलीफ का निकाल कैसे करना है ?
दादाश्री : ' नहीं है मेरी' ऐसा कहकर ही । वह अपनी नहीं है। उस बिलीफ का निकाल हो ही जाएगा उससे ।
दोनों स्पर्शों के
असर में भिन्नता
प्रश्नकर्ता : जब स्त्री का स्पर्श होता है, तब उसके परमाणु एकदम असर डालते हैं। जबकि ज्ञानीपुरुष को भी स्पर्श करते हैं, तब ज्ञानीपुरुष के जो परमाणु हैं, वे असर तो डालते ही हैं, लेकिन इतने फोर्सवाले नहीं लगते, इसका क्या कारण है ?
दादाश्री : वह तो परमाणुओं का असर है, इसी कारण से न! जैसे परमाणु होते हैं, वैसा ही असर होता है। किसी चिंतातुर को यदि स्पर्श कर लें तो चिंतातुर कर देता है, वैसे परमाणु खड़े हो जाते हैं। जैसे परमाणु होते हैं, वैसा ही असर होता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन उसमें हमें स्पष्ट पता नहीं चलता, इसका क्या कारण है ?
अनुभव होता है। इसमें इतना
दादाश्री : हाँ, वह तो हर एक तरह के परमाणुओं के परिणाम हैं। परमाणुओं का असर हुए बगैर नहीं रहता। अंगारों को स्पर्श करे तो अंगारा और इस बर्फ को स्पर्श करे तो बर्फ, जैसे उनमें परमाणु होते हैं, तुरंत ही उनका असर होता है। उसे स्पर्श करते