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तितिक्षा के तप से गढ़ो मन-देह (खं-2-१२)
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आहार एकदम बंद मत कर देना। दाल-चावल वगैरह खाओ, वह तो ऐसा आहार है कि जो जल्दी पाचन हो जाए! और पचने के बाद जो खून बनता है, वही खून इस्तेमाल होता है। हररोज़ काम आए इतना ही खून बनता रहता है। आगे का (इससे ज़्यादा/ अतिरिक्त) प्रोडक्शन जो था न, वह कम हो जाएगा!
प्रश्नकर्ता : शुद्ध घी हो तो उसमें क्या गलत है?
दादाश्री : घी हमेशा मांस बढ़ानेवाला होता है और मांस बढ़े तो वीर्य बढ़ता है, वह ब्रह्मचारियों की लाइन ही नहीं है न! यानी आप जो भी भोजन खाओ, सिर्फ दाल-चावल-कढी खाओ, फिर भी भोजन का स्वभाव ऐसा है कि घी के बिना भी उसका
खून बन जाता है और वह हेल्पिंग होता है। कुदरत ने ऐसा नियम रखा है क्योंकि जो गरीब इंसान है, वह ये सब कैसे खा पाएगा? तो गरीब इंसान जो खाता है, उससे भी उसे पूरी शक्ति मिल जाती है न! उसी तरह हमें इस सादे भोजन से पूरी शक्ति मिल जाती है! लेकिन जो विकारी है, वैसा भोजन नहीं होना चाहिए।
ये जो होटल का खाते हैं, उससे शरीर में खराब परमाणु घुस जाते हैं। फिर उनका असर हुए बिना रहता ही नहीं है। उसके लिए फिर उपवास करना पड़ेगा और जागृति रखनी पड़ेगी। फिर भी संयोग वश अगर बाहर का खाना पड़े तो खा लेना, लेकिन उसमें फिर लाभालाभ देखना। तले हुए पकोड़े खाने के बजाय दूध पी लेना अच्छा। बाहर की पूरी-सब्जी के बजाय घर की खिचड़ी पसंद करना!
इतने छोटे-छोटे बच्चों को घी गोंद की मिठाइयाँ वगैरह खिलाते हैं, लेकिन बाद में उसका बहुत खराब असर होता है, वे बहुत विकारी हो जाते हैं। इसलिए छोटे बच्चे को ज़्यादा नहीं देना चाहिए, उसकी मात्रा संभालनी चाहिए। ये माल-मलीदा खाना, वह सब संसारियों के लिए हैं जिन्हें कि ब्रह्मचर्य की कुछ पड़ी नहीं है।