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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
सुख पड़ा है। याद करते ही मिले अंदर ऐसा निरा सुख ही है! जहाँ चैन खींचोगे वहाँ गाड़ी खड़ी रहेगी, खुद की इतनी शक्तियाँ हैं! लेकिन जहाँ ढीला पड़ जाए वहाँ क्या हो सकता है? तुझे दादा का निदिध्यासन रहता है क्या?
प्रश्नकर्ता : इन दो दिनों से तो रह रहा है।
दादाश्री : जिसे दादा का निदिध्यासन रहता है, उसके तो सभी ताले खुल जाते हैं। दादा के साथ अभेदता, वही निदिध्यासन है! बहुत पुण्य होता है, तब ऐसा उदय आता है और 'ज्ञानी' के निदिध्यासन का साक्षात् फल मिलता है। वह निदिध्यासन, खुद की शक्ति को भी वैसी ही बना देता है, उसी रूप बना देता है। क्योंकि 'ज्ञानी' का स्वरूप अचिंत्य चिंतामणी है, इसलिए उसी रूप बना देता है। 'ज्ञानी' का निदिध्यासन निरालंब बनाता है। फिर 'आज सत्संग नहीं हुआ, आज दर्शन नहीं हुआ।' उसे ऐसा कुछ भी नहीं रहता। ज्ञान स्वयं निरालंब है, वैसा स्वयं निरालंब हो जाना पड़ेगा, 'ज्ञानी' के निदिध्यासन से।
एक ध्येय, एक ही भाव हमने आंगन में पेड़ लगाया हो, हर रोज़ खाद-पानी डालें और अब कन्स्ट्रक्शनवाले का ऑर्डर मिले कि इस पेड़ को काट दो और वहाँ नींव खोदना शुरू कर दो, तो? अरे, तो फिर यह पेड़ लगाया ही क्यों था? यदि पेड़ लगाना हो तो काटना मत, तो उनसे कह दे कि कन्स्ट्रक्शनवाले को मकान की जगह बदलनी चाहिए। जिसकी हमने खुदने परवरिश की हो और उसे फिर हम काट दें तो क्या हुआ कहलाएगा? खुद के बच्चे की हिंसा करने के बराबर है। लेकिन लोग कुछ समझते नहीं और कहेंगे, 'काट दो न!' मैंने कभी भी यह गलती नहीं की। हमें तो तुरंत विचार आ जाता है कि यदि लगाया है तो काटना मत और काटना हो तो लगाना मत।
जिसने जगत् कल्याण का निमित्त बनने का बीड़ा उठाया है,