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अंतिम जन्म में भी ब्रह्मचर्य तो आवश्यक (खं - 2 - १७)
इसलिए मुझे तो उन्होंने पहले से पूछ लिया था, 'यह सब जो कर रहा हूँ, तो मुझे पुण्य बंधन होगा ?' मैंने कहा, 'नहीं होगा।' अभी यह सब डिस्चार्ज के रूप में है और बीज तो सभी सिक जाते हैं।
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प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि वे बीज डलें तो उसका फल अच्छा आएगा न ?
दादाश्री : वह अच्छा हो फिर भी हमें उसकी ज़रूरत नहीं है न! वह क्यों चाहिए ! उसकी ज़रूरत ही नहीं है न और वह सब विषयों को ही खड़ा करनेवाला होता हैं।
प्रश्नकर्ता : वह कैसे ?
दादाश्री : सभी तरह से, विषय ही खड़ा करनेवाला है। हमें तो कोई भी पुण्य नहीं चाहिए। हमें तो जो दादा की आज्ञा से हुआ वही ठीक और यह तो डिस्चार्ज के रूप में आया है। जितना आता है न, तो उतना रुपये, आने और पाई सहित पूरा हिसाब है। बाद में तो आपकी इच्छा होगी फिर भी नहीं होगा । प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन पिछले जन्म में ऐसा कुछ भाव किया होगा, तभी हो सकता है न? या इसी जन्म के भाव से होता है?
दादाश्री : नहीं, वह सारा तो पिछले जन्म का हिसाब है । परिणाम है और अन्य कुछ आपको करना होगा फिर भी नहीं हो पाएगा ! वह भी आश्चर्य है न!
त्यागी भावना करते हैं । मन में ऐसा होता है कि पूरी जिंदगी त्याग में ही बीत गई, इसमें तो महादु:ख है, इससे तो संसारी रहे होते तो अच्छा रहता । सेवा चाकरी करनेवाले तो मिलते। बूढ़ापे में दुःख आए तब ऐसी भावना करते हैं, इसलिए वापस संसारी बनता है और संसारी बना तब फिर ब्रह्मचर्य जैसा कुछ रहता ही नहीं ।