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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू)
प्रश्नकर्ता : उस घड़ी, शादी करते वक्त तो ऐसा ही लगता है कि जन्म-जन्म का साथ हो।
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दादाश्री : हाँ। लेकिन मन के वैरागी हो जाने के बाद ऐसा पता चलता है न! हिसाब निकालता है न ! एक दिन हिसाब निकालना आएगा या नहीं!
प्रश्नकर्ता : आएगा ।
दादाश्री : इस जगत् का हिसाब निकालना। हिसाब निकालना आ जाए तो निरा घाटा ही निकालेंगे न ! लेकिन लोग निकालते नहीं हैं न कभी भी । हिसाब निकालना नहीं आता, वे तो फायदा ही देखते हैं इसमें। 'बेहद फायदा है', कहेंगे।
प्रश्नकर्ता : आपकी मौजूदगी में एडजस्टमेन्ट कर लेना है।
दादाश्री : हाँ। ये आप्तपुत्र तो ज्ञान की वजह से ब्रह्मचर्य रख सके, वर्ना ब्रह्मचर्य पालन करना वह तो महामुश्किल चीज़ है। ज्ञान और ज्ञानी की आज्ञा, क्या नहीं कर सकते ? इसलिए मन में उल्टा विचार तक नहीं आता ।
मेरे पास सभी लड़के आते हैं न हिन्दुस्तान में । 'अरे, भाई, शादी कर लो न' कहा । 'इतनी सारी लड़कियाँ, लोगों की लड़कियाँ कहाँ जाएँगी?' 'नहीं, हमने तो सारा सुख देखा, हमारे माँ - बाप का, लड़ते हैं वे तो। हम देखते हैं न सुख, इसलिए हमने जान लिया है कि भाई, इसमें सुख नहीं है। हमने इन माँ - बाप का अनुभव देखा, इसलिए अब हमें शादी नहीं करनी है ।' कहते हैं । मेरे पास सौ-- एक लड़के हैं। हाँ, ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, ज़बरदस्त । कड़ा ब्रह्मचर्य पालन करते हैं। स्त्री पर दृष्टि तक नहीं डालते, दृष्टि गई तो तुरंत प्रतिक्रमण।
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ब्रह्मचर्य व्रत पालन करनेवाली लड़कियाँ भी हैं, ऐसी मज़बूत कुछ पालन नहीं कर सकतीं, कुछ ही लोग । स्त्रियों में मोह ज़्यादा