Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 468
________________ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८) ४१५ है। ऐसी सड़ी हुई सब्जी खाने से तो नहीं खाना अच्छा। यह सड़ा हुआ खाने जाएँगे तो उलटियाँ होंगी। यह प्रेम रहित संसार है, सिर्फ आसक्ति ही है। पहले तो प्रेमवाली आसक्ति थी। प्रेम यानी लगन लगी रहती थी। अब तो लगन ही नहीं लगती न? टिकट को भले ही कितना भी गोंद लगाया जाए फिर भी टिकट चिपकती ही नहीं। कागज़ ही ऐसा है, फिर इंसान तंग आ ही जाएगा न! ___यानी इस काल में लोग प्रेम भूखे नहीं हैं, विषय भूखे हैं। जो प्रेम भूखे हों, उन्हें तो अगर विषय नहीं मिले फिर भी चलेगा। ऐसे प्रेम भूखे मिलें तो उनके दर्शन करेंगे। ये तो विषय भूखे हैं। विषय भूखे यानी क्या कि संडास। यह संडास, वह विषय भूख है। वहाँ जाने को नहीं मिलता तो क्यू नहीं लगती? आपने देखी है कहीं क्यू? कहाँ देखी है? प्रश्नकर्ता : हमारी चाली में तो लाइन में ही खड़ा रहना पड़ता है। दादाश्री : चाली में भी क्यू लगती हैं! हमने अहमदाबाद में पहले क्यू देखी थी। मुझे एक बार क्यू में खड़ा रहना हुआ। मैंने कहा, 'मुझे इस वक्त संडास नहीं जाना।' उससे बेहतर हम यों ही बैठे रहेंगे। हमें इस तरह क्यू में संडास नहीं जाना। जहाँ संडास की इतनी कीमत बढ़ गई! कीमत तो लॉज की बढ़ गई है, लेकिन यहाँ संडास की भी कीमत बढ़ गई! मुझे क्यू में खड़े रहना पड़ा! वह व्यक्ति कहने लगे कि, 'अभी थोड़ी देर, पाँच मिनट खड़ा रहना पड़ेगा।' मैंने कहा, 'नहीं, एक मिनट भी नहीं, चलो वापस आता हूँ। कब्ज होगा तो चूरण ले लेंगे लेकिन यह नहीं चलेगा। यह कैसे चलेगा? वहाँ खड़े रहकर किसका इंतज़ार कर रहे हो?! इसकी भी कीमत?' मुझे तो शर्म आई। मैं तो अगर भोजन के लिए भी क्यू हो तो खड़ा नहीं रहता। उसके बजाय तेरी रोटी तेरे घर रहने दे। थोड़े चने खा लेंगे।

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