Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 474
________________ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८) ४२१ है या ऐसे लाल-पीली साड़ियाँ पहननी हैं और फिर से संसार में रहना है? ये लाल, पीली, नीली साड़ियाँ नहीं होनी चाहिए, वे सब तो मोहवाली चीजें हैं। कभी न कभी तो मोह छोड़ना ही पड़ेगा न?! क्या सिर्फ साड़ी को ही छोड़ना है? कभी न कभी देह को भी छोड़ना ही पड़ेगा न? अर्थात् इसमें सच्चा सुख है ही नहीं। यह तो सब कल्पित सुख है। विषयों में भी कल्पित सुख है और अन्य चीज़ों में भी कल्पित सुख है। सच्चा सुख आत्मा में है। सनातन सुख! वह कभी भी नहीं जाता। हमारा सुख कभी भी जाता ही नहीं है न! यदि तुम्हें ब्रह्मचर्य पालन करना हो तो इतना सावधान रहना है कि परपुरुष का विचार तक नहीं आना चाहिए और विचार आते ही धो देना चाहिए। प्रश्नकर्ता : आपने कहा था मिश्रचेतन से सावधान रहना। दादाश्री : बस, इस मिश्रचेतन से जो सावधान रहा, उसका कल्याण हो गया! एक शुद्धचेतन है और एक मिश्रचेतन है। मिश्रचेतन में यदि फँस गए तो अगर आत्मा प्राप्त किया हो, फिर भी उसे भटका देगा। अत: इसमें अगर विकारी संबंध हो गए तो भटकना पड़ेगा क्योंकि हमें मोक्ष में जाना है और वह व्यक्ति अगर जानवर में जानेवाला हो तो हमें भी वहाँ खींच ले जाएगा। संबंध हुआ तो वहाँ जाना पड़ेगा। इसलिए इतना ही देखना है कि विकारी संबंध खड़ा ही नहीं हो। मन से भी बिगड़ा हुआ नहीं हो, तब वह चारित्र कहलाता है। उसके बाद ये सब तैयार हो जाएँगे। बिगड़े हुए मन होंगे तो फिर वह फ्रैक्चर हो जाएगा, वर्ना एक-एक लड़की में कितनी शक्ति है! वह क्या कुछ ऐसी-वैसी शक्ति है? यह तो, अगर हिन्दुस्तान की बहनें हों और साथ में वीतराग का विज्ञान हो तो फिर बाकी क्या रहा? माँ-बाप खुद की बेटी से चारित्र संबंधित बातचीत कैसे कर

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