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दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं - 2- १८)
दादाश्री : जैसा खुद हो जाए, निश्चय भी वैसा ही हो जाता है। खुद कमज़ोर हो जाए, तो हो गया अनिश्चय।
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प्रश्नकर्ता : लेकिन इस तरफ का निश्चय करने में इतनी देर लगती है जबकि शादी का निश्चय तुरंत ही हो जाता है। ऐसा क्यों ?
दादाश्री : नहीं, यहाँ पर देर लगती ही नहीं। यहाँ पर, वह बिना देरीवाला ही है।
प्रश्नकर्ता यहाँ पर भी बिना देरी का ही ?
दादाश्री : हाँ, जैसा वह तुरंत, वैसा ही यह भी तुरंत । यहाँ पर अगर देर लगाकर किया हो तो उसका निश्चय बदलेगा ही नहीं न! कभी भी नहीं बदलेगा, मार डाले फिर भी नहीं बदलेगा।
प्रश्नकर्ता : हम सभी को अगर ठीक से समझकर यह निश्चय स्ट्रोंग करना हो, तो समझ तो हम पूरी-पूरी लाए ही नहीं हैं न! तो फिर वह स्ट्रोंगनेस कैसे आएगी ?
दादाश्री : तेरा ध्येय होगा तो सबकुछ आएगा।
प्रश्नकर्ता : यानी जिसे स्ट्रोंग करना है, उसका होगा ही?
दादाश्री : नहीं। ध्येय तय किया होगा न तो स्ट्रोंग रहेगा तो फिर हो जाएगा। यह ध्येय नहीं है, उसका ध्येय नहीं है कुछ
भी।
प्रश्नकर्ता : आपने दादा एक बार कहा था कि निश्चय मज़बूत करना हो तो निश्चय के विरुद्ध का एक भी विचार नहीं आना चाहिए।
दादाश्री : हाँ। और अगर उस ध्येय को नुकसान पहुँचनेवाला कुछ भी आए तो उसे हटा देना चाहिए ।