Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 470
________________ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८) ४१७ भुगतनी पड़ेगी इसलिए आँखें गड़ाना ही नहीं। अन्य दोष चला सकते हैं, लेकिन यह अत्यंत दु:खदाई है। नर्क में पड़ने जैसा दु:ख लगता है। अरे, इसकी बजाय नर्क में पड़ना अच्छा। अपने आप शादी सामने से आए तो उस समय शादी करना। जगत् के लोग निंद्य माने, उससे तो भयंकर दु:ख पड़ते हैं वैसा होना ही नहीं चाहिए इसलिए तुरंत प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। लेकिन यदि शक्ति हो तो संयम लो और शक्ति नहीं हो तो शादी कर लेना। शादी करने से दोष नहीं लगता। बाकी विषय जैसी मार जगत् में अन्य कोई है ही नहीं। विषय का विचार आया कि तभी से वेदना उत्पन्न हई, जलन होती रहती है। विषय को जीत लिया मतलब सबकुछ जीत लिया। अगर पति होगा तभी झंझट रहेगा न? लेकिन यदि ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया हो तो विषय से संबंधित झंझट ही नहीं रहेगा न! और ऐसा ज्ञान हो तो वह काम ही निकाल दे! लेकिन स्त्री को स्त्री-जाति का ज़बरदस्त अवरोध है, इसलिए श्रेणी बहुत ऊपर चढ़ती है लेकिन स्त्री-जाति है, इसलिए रुक जाती है न! स्त्री-जाति कितनी बाधक है! स्त्री-जाति को बाधकता उत्पन्न होती है, कि कब उसका लेवल खिसक जाए, वह कह नहीं सकते। जबकि पुरुष को तो खुद 'एक्जेक्टनेस' में आ चुका हो तो फिर वह खिसकेगा नहीं, उसकी गारन्टी! तुझे अच्छा रहता है न? प्रश्नकर्ता : यों तो अच्छा है, लेकिन दादा स्त्री-प्रकृति है न! आगे नहीं बढ़ने देगी, ऐसा होता है। दादाश्री : लेकिन वह तो यदि बहुत प्रतिक्रमण करे और स्ट्रोंग रहे तो कुछ नहीं होगा। स्ट्रोंग रहना चाहिए। एक बार फिसलने के बाद मार खा खाकर मर जाएगी। एक ही बार फिसली तो खत्म हो गया। यानी विषय वह भोगने की चीज़ नहीं है, ऐसा मान ले तो चलेगा! भोगने की कई चीजें हैं बाहर। यह तो निरी

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