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दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८)
हम तो सभी से कहते हैं कि शादी कर लो। फिर तुम अगर शादी नहीं करतीं तो वह तुम्हारी मर्जी । शादी नहीं करके फिर चारित्र बिगड़े उससे तो शादी कर लेना अच्छा। लोकनिंद्य हो तो, वह सब व्यर्थ है। उससे तो मेरिज कर लेना अच्छा, वर्ना फिर हरहाए पशु जैसा कहलाएगा।
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प्रश्नकर्ता : लोकनिंद्य होना, वह तो बाहर की बात हुई, लेकिन खुद का बिगड़ता है न ?
दादाश्री : यानी खुद का तो बिगड़ता ही है, लेकिन फिर लोकनिंद्य हो जाए, वहाँ तक का बिगाड़ता है। वह फिर थोड़ाबहुत नहीं बिगाड़ता । फिसला कि फिर देर ही नहीं लगती न ? यदि ब्रह्मचर्य सँभाले तो भगवान बनने की तरकीब है उसमें! ज्ञानी तो सारी कलाएँ बताते हैं, सभी रास्ते बताते हैं, लेकिन उसे खुद को स्ट्रोंग रहना चाहिए ।
प्रश्नकर्ता : खुद स्ट्रोंग रहे, लेकिन फिर क्या आगे जाकर दिक्कत नहीं आएगी ?
दादाश्री : नहीं, कुछ नहीं होगा । ज्ञानीपुरुष की कृपा साथ में रहेगी न! खुद स्ट्रोंग रहा तो ज्ञानीपुरुष की कृपा रहा करेगी, वचनबल रहा करेगा, उससे सभी काम होते रहेंगे। खुद कमज़ोर पड़े तो सबकुछ बिगड़ जाएगा । ' क्या होगा, अब क्या होगा' ऐसा हुआ तो बिगड़ा। 'कुछ भी नहीं होगा' कहा कि सबकुछ चला जाएगा। शंका हुई कि फिसला ।
हमारी विधि तो आपको बाहर से नुकसान नहीं होने देगी लेकिन जिसे खुद को ही बिगाड़ना हो तो उसका क्या हो सकता है ? अतः अगर निश्चय कर लो तो सही राह पर चलेगा सारा ।
प्रश्नकर्ता : निश्चय तो ठीक से किया है लेकिन कमी कहाँ रह जाती है कि आज्ञा है, ज्ञान है लेकिन पुरुषार्थ में कमी रह जाती है।