Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 467
________________ ४१४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) दादाश्री : वह सब तो कर देंगे हम। वे सारे कनेक्शन हम करवा देंगे। तेरी इच्छा हो तो हम सारे कनेक्शन करवा देंगे। इन लड़कों को सभी कनेक्शन करवा दिए, तो ज़रा भी विचार नहीं आता। वैसा करके देते हैं हम लेकिन अगर तेरा तय हो जाए, उसके बाद मुझसे कहना। देखो न, वह लड़की कह रही थी, शादी की न आखिर में! प्रश्नकर्ता : मुझे आप्तपुत्री बनना है, लेकिन ये सारे जो मेरे भाव पहले हो चुके हैं, शादी करने के, नौकरी करने के। वे सभी मुझे पूरे करने पड़ेगे या धुल जाएँगे? दादाश्री : जो हो चुके हैं, उसमें हर्ज नहीं। जो हो चुका है, उसका रास्ता हम निकाल देंगे। लेकिन अब नहीं होने चाहिए और जॉब करने में भी हर्ज नहीं है लेकिन आप्तपुत्री के लिए सिर्फ ब्रह्मचर्य ही ज़रूरी है। तुम ने अगर शादी नहीं की तो कोई तुम से पूछेगा कि तुम्हारे कितने बच्चे हैं? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : क्यों? क्योंकि शादी नहीं की इसलिए। मूल में पति ही नहीं है तो बीज कहाँ से डालेंगे? और बीज नहीं डाले तो पौधा उगेगा ही कैसे? पति, पति जैसा हो, कि वह कहीं पर भी जाए फिर भी एक क्षण भी तुम्हें नहीं भूले, ऐसा हो तो काम का, लेकिन ऐसा किसी काल में हो नहीं सकता तो फिर ऐसे बेकार पति का क्या करना है? खरा पति मिले तब(उसके लिए) कोई एकांत शैयासन छोड़े। क्योंकि अगर उसकी चित्तवृत्तियाँ आपके साथ रहें, तो दूसरे के साथ बाचतीच करते हुए भी आपकी चित्तवृत्तियाँ जहाँ पति हो, वहीं जाएँगी। तो हो गया न एक का एक! एकांत! अभी ऐसा नहीं मिलता न? तो बाकी का सारा माल तो सड़ा हुआ कहलाता

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