Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 461
________________ ४०८ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : ऐसा तुझे पता चलता है न कि यहाँ उसका लफड़ा है? सबकुछ पता चलता है इसलिए हमें इस तरफ इतना सीख जाना चाहिए कि अपनी सेफ साइड किस में हैं? दादा ने जो यह बताया, वही सेफ साइड। ये सभी लौकियाँ काटो तो अंदर से निरा कचरा निकलेगा। इन जानवरों में बुद्धि लिमिटेड है और मन भी लिमिटेड है इसलिए जानवरों को हमें सिखाने नहीं जाना पड़ता कि आप ऐसे लफड़े मत करना। क्योंकि जानवरों में तो आसक्ति होती ही नहीं। आसक्ति तो बुद्धिवाले में होती है। सभी जानवर कुदरती जीवन जीते हैं, नोर्मल जीवन जीते हैं जबकि ये मनुष्य तो बुद्धिवाले इसलिए आसक्ति खड़ी करते हैं कि कितनी अच्छी दिख रही है! अरे, घनचक्कर, उसे छील तो सही। छीलने पर अंदर से क्या निकलेगा? इस सत्संग में ही रहने जैसा है। अन्य कहीं मित्रता करने जैसी नहीं है। सत्युग में मित्रता थी, ठेठ तक की, जिंदगी भर मित्रता निभाते थे। अभी तो दगा देते हैं। वैराग्य लाने के लिए लोग किताबें लिखते रहे। अस्सी प्रतिशत किताबें वैराग्य लाने के लिए लिखी गई हैं, फिर भी किसी में वैराग्य नहीं दिखा। वैराग्य तो, अगर ज्ञानीपुरुष एक घंटा बोलें न तो जन्मोजन्म तक वैराग्य याद रह जाता है। इस ज्ञान से वैराग्य रहता है या नहीं रहता? प्रश्नकर्ता : हाँ, रहता है। आज के सत्संग से बहुत ही फर्क पड़ गया। दादाश्री : यह सत्संग नहीं हो, तब तक मनुष्य उलझता रहता है। ऐसी पज़ल खड़ा हो तब क्या करना चाहिए, वह पता नहीं होता। यह तो जब पज़ल खड़ा होता है, तब दादाजी के शब्द याद आते हैं।

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