________________
दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८)
प्रश्नकर्ता: शरीर की बात जाने दें। यदि इंसान का मन अच्छी तरह से गढ़ा हुआ हो तो क्या उससे फर्क नहीं पड़ेगा ?
४०७
दादाश्री : वैसे गढ़े हुए मन तो कुछ ही लोगों के होते हैं। सभी लोगों के मन गढ़े हुए नहीं होते न ? ये जो सारे लोग घूमते हैं, उनके मन कोई गढ़े हुए नहीं हैं, वे तो दगाखोर मन। इसलिए हम यह गढ़ाई करते हैं। उसके बाद वे नहीं फँसते वर्ना अगर गढ़ाई नहीं की गई हो तो फिर फँस जाएँगे। यह जगत् तो शिकारी है, शिकार ढूँढते हैं। पूरा जगत् शिकार करने को निकला है। लक्ष्मी के, विषय वगैरह के जहाँ-तहाँ शिकार ही ढूँढते रहते हैं।
इन लड़कियों की उम्र छोटी है और अगर यह ज्ञान नहीं मिले तो कितना जोखिम है ! एक बार फँसने के बाद इसमें से निकलना महामुश्किल है। फिर तो लफड़ा चिपक जाता है। अब यह फँसाव है, लफड़ा है ऐसा समझ गई न लफरुं जो जानी कयुं, तो छूटुं पडतुं जाय' आपको इसका क्या मतलब समझ में आया?
"
एक लड़का कॉलेज में पढ़ रहा था। वह पारसी लेडी के साथ घूमने लगा। वह जैन था इसलिए उसके पिताजी ने क्या कहा, 'यह लफड़ा तू कहाँ से लाया है ?' तब लड़का कहता है कि, 'मेरी फ्रेन्ड को आप लफड़ा कहते हो ? आप कैसे इंसान हो ?' लड़के ने ऐसा कहा, उसका कारण ? जब तक उसे यह समझ नहीं आता कि ‘यह लफड़ा है', 'यह फ्रेन्ड ही है' ऐसा समझता है तब तक लफड़ा मिलता रहेगा। लेकिन एक दिन जब उसने देखा कि वह पारसी लेडी किसी और के साथ घूम रही थी, तब उसके मन में शंका हुई कि 'यह तो लफड़ा है।' मेरे पिताजी कह रहे थे, वह बात सही है । जब से उसने जाना कि 'यह लफड़ा है', तब से वह अपने आप छूट गया। यह ज्ञान कैसा होगा? कि उसे लफड़ा समझे तब से अलग होता जाता है। कॉलेज में ऐसे लोग होते हैं न जो लफड़ा मोल लेते हैं ?