Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 458
________________ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८) पर ही आकर्षण होता है, हर कहीं नहीं होता। अब यह आकर्षण किस तरह होता है, वह आपको बता दूँ। ४०५ इस जन्म में आकर्षण नहीं हो, फिर भी किसी पुरुष को देखा, तब आपके मन में ऐसा हो जाए कि, 'ओहोहो, यह पुरुष कितना सुंदर है, खूबसूरत है।' ऐसा आपको हुआ कि तभी अगले जन्म की गाँठ पड़ गई। उससे अगले जन्म में आकर्षण होगा । कैसा रूप ? इसे छीलें तो क्या निकलेगा ? रूप किसे कहते हैं कि छीलने पर भी खराब नहीं निकले। इस रूप को तो देखने जैसा नहीं है। हीरे का रूप ठीक है। उसे अगर छीलें तो कुछ भी नहीं होगा, उसमें गंदगी नहीं है न?! रूप ठीक है। इन मनुष्यों के गुण होते हैं, लेकिन वे कैसे गुण होते हैं ? संसारी गुण । संसारी गुणों की प्रशंसा करने जाएँ, तब आकर्षण होता है। धार्मिक गुणों, ज्ञान के गुणों की प्रशंसा करे, वह बात अलग है। बाकी जगत् प्रशंसा करने जैसा नहीं है, सिर्फ एक शुद्धात्मा ही समझने जैसा है। सोने का, चाँदी का निश्चय उसे कहते हैं कि भूले नहीं । हमने शुद्धात्मा का निश्चय किया हैं, उसे भूलते नहीं न ? थोड़ी देर भूल जाते हैं, लेकिन लक्ष्य में ही रहता है फिर उसे निश्चय कहते हैं। किसी के साथ हम फ्रेन्डशिप भी न करें, बहुत घाल मेल नहीं रखें। एक बार यह लफड़ा चिपकने के बाद तो फिर अलग नहीं हो पाता। 'जेनुं निदिध्यासन करे, तेवो आत्मा थाय जे जे अवस्थे स्थित थए, व्यवस्थित चितराय' निदिध्यासन यानी कि 'यह स्त्री सुंदर है या यह पुरुष सुंदर है।' ऐसा सोचे, तो उतनी देर वह निदिध्यासन हो गया । सोचा कि तुरंत ही निदिध्यासन हो जाता है । फिर खुद वैसा ही बन जाता है। अतः अगर हम देखेंगे तभी झंझट होगा न ? उससे अच्छा तो आँखें नीचे कर देनी चाहिए। आँखें गड़ानी ही नहीं चाहिए।

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