Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 456
________________ दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८) ४०३ करनी है ऐसा जो निश्चय किया है, उस निश्चय को भूले नहीं, तो फिर उसकी शादी नहीं होगी। वे सभी शादी करवाना चाहें, लड़का ढूँढ लाएँ, फिर भी कुदरत मेल नहीं बैठने देगी। बाकी यह संसार तो निरा दु:ख का समुद्र ही है, उसका अंत नहीं आ सकता। दोष, आँखों का या अज्ञानता का? अब यह सारा ज्ञान हाज़िर रहेगा न? वह तो हमें हाज़िर रहना ही चाहिए कि इसे छीलेंगे तो क्या दिखेगा? इन आँखों का स्वभाव है आकृष्ट होना। कोई सुंदर मूर्ति देखे न, तो आँखों को आकर्षण होता है। यह आकर्षण कैसे हुआ? तब कहते हैं कि पूर्व जन्म का हिसाब है, हमें आकर्षण नहीं करना हो फिर भी होता रहता है। आकर्षण, वह डिस्चार्ज हो रही चीज़ है इसलिए जहाँ आकर्षण हो, वहाँ हमें ज्ञान हाज़िर रखना है कि 'दादाजी ने कहा है कि चमडी छीलें तो क्या निकलेगा?' ताकि वैराग्य आ जाए और फिर मन टूट जाए, वर्ना आकर्षण के साथ मन एडजस्ट हुआ तो खत्म कर देगा। लफड़े ही चिपक जाएँगे। लफड़े चिपकें तो फिर छूटते नहीं हैं, सात-सात जन्मों तक नहीं छूटते, ऐसा बैर बाँधते हैं, लेकिन हमें तो मोक्ष में जाना है। मोक्ष में जानेवाले को ऐसे लफड़ेवाला व्यापार सहन ही नहीं होगा। जो माल हमें नहीं चाहिए, सभी हलवाई की दुकानें हो, लेकिन हमें कुछ नहीं लेना हो, तो क्या हम उन्हें देखते रहते हैं? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : उसी तरह स्त्री को पुरुषों की ओर नहीं देखना चाहिए और पुरुषों को स्त्रियों की ओर नहीं देखना चाहिए क्योंकि वे अपने काम का नहीं हैं। दादाजी कहते थे कि 'यही कचरा है,' तो फिर उसमें देखने को क्या रहा? एक बार एक बड़े संत छत पर बैठे-बैठे किताब पढ़ रहे

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