________________
दादा देते पुष्टि, आप्तपुत्रियों को (खं-2-१८)
४०१ हैं। क्या बिना कपड़े के अच्छे दिखते हैं? बिना कपड़े तो ये गाय, भैंस, बकरी, कुत्ते, सभी अच्छे दिखते हैं, लेकिन मनुष्य अच्छे नहीं दिखते। अब ऐसा ज्ञान कोई देता ही नहीं न? ऐसी सविस्तार समझ ही कोई नहीं देता न। फिर मोह ही उत्पन्न होगा न! दादाजी तो कहते थे कि यह सब तो ऐसी गंदगी है, फिर मोह कैसे उत्पन्न हो? कोई स्त्री या पुरुष भले ही, कैसे भी बाल बनाकर घूम रहे हों, तो हमें क्या उसमें? चीरें तब भीतर से क्या निकलेगा उसमें से? जैसे यह लौकी छीलते हैं, वैसे ही जब उसे छीलेंगे तब क्या होगा? भीतर का कचरा दिखेगा न? किसी को यहाँ पीप पड़ गया हो और वह तुझे कहे कि 'लो, यह धो दो।' तो वह तुझे अच्छा लगेगा? उसे तो छूना भी अच्छा नहीं लगेगा न? और कोई मित्र हो और उसे पीप नहीं पड़ा हो तो तुझे हाथ लगाना अच्छा लगेगा न? लेकिन अंदर तो ऐसा कचरा माल ही भरा है। उसे तो हाथ भी नहीं लगा सकते। मोह करने जैसा जगत् है ही कहाँ? लेकिन ऐसा सोचा ही नहीं न! किसी ने बताया ही नहीं! माँ-बाप भी शर्म के मारे नहीं बताते। खुद फँसे हैं, वे सब को फँसाते रहते हैं। ये दादाजी नहीं फँसे इसलिए सभी को खुला कह देते हैं कि 'देखना, इस रास्ते पर फँसोगे। ये रास्ते अच्छे नहीं है। यह तो भयंकर मार्ग है।' दादाजी ऐसे लाल झंडी दिखाते हैं कि 'भाई, यह पुल गिरनेवाला है' फिर गाड़ी को आगे नहीं जाने दोगे न?
अभी कम उम्र है आपकी, उसमें एक ही बार फँस गए, फिर बचना बहुत ही मुश्किल है इसलिए शुरू से ही सावधान रहकर चलना। बाहर तो जगत् देखने जैसा है ही नहीं। जगत् फ्रेन्डशिप करने जैसा है ही नहीं। तुझे ऐसा लगा?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : जगत् शादी करने जैसा भी नहीं है, लेकिन शादी किए बिना चारा ही नहीं। वह अपने हाथ में है ही नहीं न! हमें