Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 455
________________ ४०२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पू) शादी नहीं करनी हो फिर भी मार-पीटकर, रुला-धुलाकर मंडप में बिठा देते हैं। वह तो अनिवार्य है, दंड है एक तरह का। उसे भुगते बिना तो चारा ही नहीं है, वह 'व्यवस्थित' है। इस बहन को भी अगर मन में भावना हो कि ये सभी व्रत ले रहे हैं तो मैं भी ले लूँ, तो मैं मना करूँगा उसे। छ: -बारह महीनों में जब कभी संयोग बैठे तब शादी कर लेना। हम आशीर्वाद देंगे और फिर तुझे लाभ हो ऐसा रास्ता कर दूंगा। और लाभ अच्छा होगा। यह जो उलझन हुई है, वह उलझन कोई नहीं छुड़वाएगा। मैं तो लड़कियों को मना कर देता हूँ। ज्ञान में रहती हों, फिर भी मना कर देता हूँ। प्रश्नकर्ता : हाँ, इसमें देखा-देखी करने जैसा नहीं है। दादाश्री : पुरुष को तो निभा सकते हैं क्योंकि पुरुष को तो अन्य कोई भय नहीं है और इसे तो अन्य भय नहीं हो फिर भी कोई छेड़खानी कर सकता है। शादी करने का आधार निश्चय पर प्रश्नकर्ता : हम अगर शादी नहीं करने का निश्चय करें, तो फिर 'व्यवस्थित' वैसा ही आएगा न? दादाश्री : शादी नहीं करने का ज़बरदस्त निश्चय हो तो शादी नहीं होगी लेकिन निश्चय ऐसा नहीं होना चाहिए कि फिर दूसरे दिन भूल जाए। निश्चय किसे कहेंगे कि निरंतर याद रहे। निश्चय भूल जाए तो फिर शादी होगी, वह बात निश्चित है। निश्चय नहीं भूलेगी, तो शादी नहीं होगी, उसकी मैं गारन्टी लिख देता हूँ। क्योंकि जिस गाँव हमें जाना है, वह तो भूलना नहीं चाहिए न? हमें बोम्बे सेन्ट्रल जाना हो तो फिर अगर उसे भूल जाएँगे तो चलेगा? वह तो याद रहना चाहिए न? उसी तरह शादी नहीं

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